शनिवार, 30 अप्रैल 2016

एक मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस -जिन्दाबाद !




   दुनिया के मेहनतकशों -एक हो -एक हो !

   शिकागो  के अमर शहीदों को -लाल सलाम !!

   आयेगा भई  आयेगा -नया जमाना आयेगा !

   लूटने वाला जाएगा -कमाने वाला  खायेगा !!

   एक मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस -जिन्दाबाद !

    धर्मनिरपेक्षता जिंदाबाद -समाजबाद जिंदाबाद ! !

     साम्प्रदायिकता -मजहबी आतंकबाद -मुर्दाबाद !

     माल्याओं को पैदा करने वाला पूंजीबाद -मुर्दाबाद  

     वामपंथ का रास्ता -सही रास्ता -सही रास्ता !

     जेएनयू का रास्ता -सही रास्ता -सही रास्ता !!

   क्या मांगे मजदूर किसान ? रोटी कपडा और मकान !

    कौन बनाता हिन्दुस्तान ? भारत का मजदूर -किसान !
  
    अम्बानी-अडानी ,टाटा-बिडला  और उनके एजेंटों  के अच्छे दिन आये हैं !

   देश की सीमाओं पर ,खेतों -खलिहानों और विश्वविद्यालयों पर संकट के बादल छाये हैं !

  एक मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस -जिन्दाबाद !

     इंकलाब ज़िंदाबाद ! !

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

दुनिया में भारतीय विदेश नीति की खिल्ली उड़ाई जा रही है।

 'मोदी सरकार' से पहले वाले किसी भी  भारतीय नेता या प्रधान मंत्री ने चीन और पाकिस्तान के नेताओं पर कभी  विश्वाश नहीं किया। और यही वजह है कि  भारत को इन दुष्ट पड़ोसियों के सामने कभी इतना शर्मिंदा नहीं होना पड़ा ,जितना कि अब मोदी जी के राज में  भारत को शर्मिन्दा होना पड़  रहा है। हमारे हिन्दू दर्शन पारंगत  प्रधान मंत्री जी और उनके 'हमसोच' संघ बौद्धिकों की सिद्धांत निष्ठां में  श्रीकृष्ण या चाणक्य का अक्स तो  बिलकुल नहीं दिख रहा है। किन्तु पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान की रणनीति में भगवान  'श्रीकृष्ण की  नीति 'का असर  अवश्य झलक  रहा है। कुरुक्षेत्र के मैदान में जब कर्ण के रथ का पहिया रुधिर जनित कीचड़ में धस गया तो वह रथ से नीचे उतर गया और  पहिया उचकाने में जुट गया। जाहिर है कि कर्ण ने अपने धनुष बाण इत्यादि जमीन पर रख दिए होंगे  ! उस निहत्थे कर्ण को मारने के लिए  ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उकसाया था। परिणाम सामने था। दानवीर  महाबली कर्ण छल-बल से मारा  गया। झूँठे  दम्भ में अपना ५६ इंची सीना ठोकने वाले  भारतीय नेताओं की नादानी से अब जबकि  भारत के रथ  का पहिया  धराशायी  हो रहा है ,अदूर - दर्शिता ,कुशासन, गरीबी,सूखा ,आतंकवाद , आरक्षण आंदोलन ,भृष्टाचार के दल-दल में  भारत बुरी तरह फंस गया है। ऐंसे में चीन रुपी  श्रीकृष्ण ने पाकिस्तान रुपी अर्जुन को उकसाया है कि वह आतंकवाद रुपी शिखण्डी की ओट से भारत रुपी  निहत्थे कर्ण पर  प्राणघातक हमला करे !

पहले तो भारत के सत्ताधारी नेताओं ने विदेश नीति का सही आकलन किये बिना ,संसद को विश्वाश में लिए बिना,यूएनओ में चीन की भूमिका को जाने बिना -पाकिस्तानी आतंकी अजहर मसूद और जेश -ए-मुहम्म्द पर प्रतिबंधात्मक पस्ताव पेश कर दिया। चूँकि चीन ने वीटो कर दिया और भारत यूएनओ में हार गया।भारत की याने  हमारी बहुत  किरकिरी हुई। दुनिया में  भारतीय  विदेश नीति की  खिल्ली उड़ाई जा रही है। इस गलती को सुधारने के लिए डोभाल साहब  और सुषमा जी ने चीन के अलगाववादी उइगर नेता दोलकुंन इशा  को भारत का बीजा दे दिया। इतना कदम उठाना तो फिर भी जायज लग रहा था। किन्तु चीन के एक इशारे पर  दोलकुन का  बीजा  वापिस ले लिया यह किस देशभक्ति का सबूत है ? दोलकुन का बीजा  किस मजबूरी  में रद्द किया गया ?यह भारत की जनता को अवश्य जानना चाहिए।

भाजपा और संघ परिवार को बहुत गलत फहमी है कि ''चीन और पाक़िस्तान तो दूध के धुले पड़ोसी देश हैं ,वो तो हमारे पहले वाले प्रधान मंत्री  ही नाकारा और नालायक थे इसलिए समस्याएं हल नहीं हुईं '' ! दरसल इसी गलत धारणा से संघ परिवार संचालित हो रहा है। वरना मोदी जी विदेशों में जाकर यह नहीं कहते कि 'भारत के पहले वालों  सत्तारूढ़ नेताओं ने  तो ६७ साल में कुछ  भी नहीं किया अब हम आ गए हैं सो सब ठीक कर देंगे ''!इन संघियों को एक और  बहुत बड़ी गलत फहमी है कि  भारत के वामपंथी  तो चीन के शुभचिंतक हैं। वास्तव में वे भारतीय वामपंथ  और कम्युनिस्ट पार्टी आफ चायना ' के बीच के मतभेदों को न तो जानते हैं और न ही उन्हें यह सब जानने में कोई रूचि है। वे तो इस २१वीं शताब्दी में भी उसी ९० साल पुराने गोलवलकरी साहित्य से ही  संचालितहो रहे हैं।जिसमें कम्युनिस्टों ,दलितों,मुस्लिमों ,ईसाइयों को संघ का स्थाई  शत्रु मान लिया गया है।

  प्रायः हरेक  प्रबुद्ध भारतीय को अपने  वतन की फ़िक्र है। यही वजह है कि  जब किसी खेल  विशेष में भारत के खिलाड़ी जीत दर्ज कराते  हैं ,तो  पूरे भारत में आतिशबाजी होती है।वैसे तो भारत की अधिकांश जनता अपने  सभी पड़ोसी मुल्कों से दोस्ताना मैत्रीभाव की कायल रही है।  किन्तु  जब  कभी कोई पड़ोसी मुल्क  भारत की ओर बुरी नजर डालता है तो भारत की आवाम उसे माकूल जबाब देने को सदैव  तैयार रहती है। किन्तु इस संदर्भ में 'संघमित्रों' का रवैया नितांत अभद्र और बचकाना रहा है। उन्हें पता नहीं कौनसी जन्म घुट्टी पिलाई जाती है कि  वे अपने अलावा बाकी सभी भारतीयों को देशद्रोही ही समझते हैं। भले ही उद्धव ठाकरे कहते रहें कि जेएनयू छात्र  कन्हैया कुमार को देशद्रोही कहना गलत है ।  किन्तु संघ परिवार' के दुमछल्ले बाज नहीं आयंगे क्योंकि  वे  ओंधी खोपड़ी जो ठहरे !  श्रीराम तिवारी 
 

रविवार, 24 अप्रैल 2016

क्या धर्म-मजहब की ओट में छिपा अपराधी - कानून से परे हो जाता है ?




  समस्त संसार में उज्जैन सिंहस्थ को भले ही बड़े आदर और कौतुहल से देखा जा रहा हो ,लेकिन ऐंसा लगता है कि  यहाँ पधारे नकली  साधू संतों द्वारा कानून का पालन  बिलकुल नहीं किया जाता।  अव्वल तो ये फोकटिए हर उस चीज की मांग करते हैं जो एक साधु या संत के लिए त्याज्य है। ये साधु -बाबा लोग तो हर ऐशोआराम की मांग कर  रहे हैं मानों ये  प्रदेश सरकार के जँवाई  हों ! जरा सी चूक हुई नहीं कि  ये धूर्त बाबा लोग जन प्रतिनिधि और मंत्री को भी डांटने -डपटने से नहीं चूकते। क्योंकि इससे उनके अहम -दर्प को संतुष्टि मिलती है। किसी  की  रंचमात्र भूल या कमीवेशी पर  पुलिस को दौड़ा- दौड़ाकर  मारने ,श्रद्धालुओं  के सर फोड़ने  से ये बाज नहीं आते।  मेले  में चोरी चकारी के कारनामों से  'महाकाल बाबा ' खुश होंगे यह तो सम्भव नहीं। और पावन शिप्रा भी  इन्ही तत्वों द्वारा कब की मैली हो चुकी है। मध्यप्रदेश सरकार ने  करोड़ों रुपया खर्च कर इसकी सफलता के  खूब विज्ञापन परोसे  और जनता  के श्रम  की कमाई का बड़ा हिस्सा इस सिंहस्थ में स्वाहा हो चुका है। किन्तु न तो साधु-संत  संतुष्ट हैं ,न श्रद्धालु संतुष्ट है और'भोलेबाबा'संतुष्ट होंगे इसकी  भी समभावना बहुत कम  है। !

यह  तो सभी जानते हैं कि अधिकतर  साधु कौन बनता है ? सिर्फ आसाराम ,नित्यानंद ,नारायण साईं या राधे माँ  के बदनाम हो जाने से इस प्रश्न का उत्तर सम्भव नहीं है। कुछ बदमाश गुरुघंटालों के नाम उजागर हो जाने से भी समस्त 'संत समाज' या 'साधु मण्डली' की असलियत जान पाना संभव नहीं है। धर्मान्धता और पापा पंक की  दल-दल बहुत गहरी है। यह क्रानिक -संक्रामक बीमारी प्रायः हर समाज  - धर्म -मजहब में उनकी अनैतिक  गटर गंगाओं में अपने -अपने तरीके से बहा करती है। किसी भी सभ्य समाज के  सुसंस्कृत सदाचारी ,क्रांतिकारी एवं ज्ञानिक नजरिए वाले व्यक्ति को इतनी फुर्सत  नहीं कि लम्बी दाड़ी ,जटाएँ बढ़ाकर -नंग-धड़ंग होकर कुम्भ मेले की धूल फांकता फिरे या सफ़ेद धोती पहिनकर हज यात्रा में शैतान को पत्थर मारने के चक्कर में खुद घन चक्कर होता फिरे !

जो लोग निजी जिंदगीं में असफल होकर घोर फ्रस्टेशन और निराशा के शिकार हो जाया करते हैं , जो लोग जाने-अनजाने अपना शील ,सत्य,शौर्य और आपा खो  बैठते हैं ,जो लोग सामाजिक या राष्ट्रीय अपराध कर बैठते हैं ,वे तमाम हत्यारे,बलात्कारी ,डाकू  -चोर ,ड्रग माफिया ओर कानून  की नजर से भागे हुए अपराधी  ही इस मजहबी  अन्धश्रद्धा के  अंधकूप में छलांग लगाते रहते  हैं। ये सामाजिक परजीवी -अमरवेलि के खाद पानी हैं। कुम्भ मेले में जो बाबा हाथ में त्रिशूल लेकर पुलिस को मारने दौड़ता है ,उस पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती। क्या धर्म-मजहब की ओट में छिपा अपराधी  कानून से परे हो जाता  है ? इन [अ ]साधुओं का अहंकार तब आसमान पर होता है ,जब कोई कलेकटर, एसपी ,इंजीनियर,व्यापारी, मंत्री, मुख्य्मंत्री , प्रधान मंत्री अथवा राष्ट्रपति भी इनके चरणों में धोक देता है।   श्रीराम तिवारी !