समस्त संसार में उज्जैन सिंहस्थ को भले ही बड़े आदर और कौतुहल से देखा जा रहा हो ,लेकिन ऐंसा लगता है कि यहाँ पधारे नकली साधू संतों द्वारा कानून का पालन बिलकुल नहीं किया जाता। अव्वल तो ये फोकटिए हर उस चीज की मांग करते हैं जो एक साधु या संत के लिए त्याज्य है। ये साधु -बाबा लोग तो हर ऐशोआराम की मांग कर रहे हैं मानों ये प्रदेश सरकार के जँवाई हों ! जरा सी चूक हुई नहीं कि ये धूर्त बाबा लोग जन प्रतिनिधि और मंत्री को भी डांटने -डपटने से नहीं चूकते। क्योंकि इससे उनके अहम -दर्प को संतुष्टि मिलती है। किसी की रंचमात्र भूल या कमीवेशी पर पुलिस को दौड़ा- दौड़ाकर मारने ,श्रद्धालुओं के सर फोड़ने से ये बाज नहीं आते। मेले में चोरी चकारी के कारनामों से 'महाकाल बाबा ' खुश होंगे यह तो सम्भव नहीं। और पावन शिप्रा भी इन्ही तत्वों द्वारा कब की मैली हो चुकी है। मध्यप्रदेश सरकार ने करोड़ों रुपया खर्च कर इसकी सफलता के खूब विज्ञापन परोसे और जनता के श्रम की कमाई का बड़ा हिस्सा इस सिंहस्थ में स्वाहा हो चुका है। किन्तु न तो साधु-संत संतुष्ट हैं ,न श्रद्धालु संतुष्ट है और'भोलेबाबा'संतुष्ट होंगे इसकी भी समभावना बहुत कम है। !
यह तो सभी जानते हैं कि अधिकतर साधु कौन बनता है ? सिर्फ आसाराम ,नित्यानंद ,नारायण साईं या राधे माँ के बदनाम हो जाने से इस प्रश्न का उत्तर सम्भव नहीं है। कुछ बदमाश गुरुघंटालों के नाम उजागर हो जाने से भी समस्त 'संत समाज' या 'साधु मण्डली' की असलियत जान पाना संभव नहीं है। धर्मान्धता और पापा पंक की दल-दल बहुत गहरी है। यह क्रानिक -संक्रामक बीमारी प्रायः हर समाज - धर्म -मजहब में उनकी अनैतिक गटर गंगाओं में अपने -अपने तरीके से बहा करती है। किसी भी सभ्य समाज के सुसंस्कृत सदाचारी ,क्रांतिकारी एवं ज्ञानिक नजरिए वाले व्यक्ति को इतनी फुर्सत नहीं कि लम्बी दाड़ी ,जटाएँ बढ़ाकर -नंग-धड़ंग होकर कुम्भ मेले की धूल फांकता फिरे या सफ़ेद धोती पहिनकर हज यात्रा में शैतान को पत्थर मारने के चक्कर में खुद घन चक्कर होता फिरे !
जो लोग निजी जिंदगीं में असफल होकर घोर फ्रस्टेशन और निराशा के शिकार हो जाया करते हैं , जो लोग जाने-अनजाने अपना शील ,सत्य,शौर्य और आपा खो बैठते हैं ,जो लोग सामाजिक या राष्ट्रीय अपराध कर बैठते हैं ,वे तमाम हत्यारे,बलात्कारी ,डाकू -चोर ,ड्रग माफिया ओर कानून की नजर से भागे हुए अपराधी ही इस मजहबी अन्धश्रद्धा के अंधकूप में छलांग लगाते रहते हैं। ये सामाजिक परजीवी -अमरवेलि के खाद पानी हैं। कुम्भ मेले में जो बाबा हाथ में त्रिशूल लेकर पुलिस को मारने दौड़ता है ,उस पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती। क्या धर्म-मजहब की ओट में छिपा अपराधी कानून से परे हो जाता है ? इन [अ ]साधुओं का अहंकार तब आसमान पर होता है ,जब कोई कलेकटर, एसपी ,इंजीनियर,व्यापारी, मंत्री, मुख्य्मंत्री , प्रधान मंत्री अथवा राष्ट्रपति भी इनके चरणों में धोक देता है। श्रीराम तिवारी !