रविवार, 27 नवंबर 2016

संघर्षमें शामिल सभी साथियोंको -नमन

''भारत बन्द'' तो विगत ८ नवम्बर से ही जारी है। आज २८ नवम्बर को तो केवल 'जबरा मारे और रोने न दे '' वाली  कहावत ही  चरितार्थ हो रही है। कालेधन वाले हरामखोर बदमाश -तक्षक नाग अपने बिलों में छुपकर काले को सफ़ेद कर चुके हैं। चूँकि उनकी बीसों घी में हैं इसलिए भारत बन्द विरोध कर रहे हैं। नोटबंदी का समर्थन करने यदि उन घरों में जाएंगे जहाँ नोटबंदी के कारण मौतें हुईं हैं, तो शायद उनकी आत्मा में इंसानियत जाग उठेगी।  

  जिनके पास संपत्ति के रूप में केवल अपना खून-पसीना है ,जो मेहनतकश नर-नारी गरीबी में भी अपना ईमान नहीं छोड़ते ,जो किसी भी तरह के अन्याय को सहन नहीं करते , जो सच्चे देशभक्त हैं ,जो शासकों की सनक को देश के लिए खतरा मानते हैं, जिन्हें लगता है कि नोटबंदी के कारण कालाधन सरकार के हाथ नहीं आया, किन्तु ईमानदार जनता अवश्य परेशान हो रही है, ऐंसे जावाँज देशभक्त लोग आज  'विमुद्रीकरण 'की खामियों का और उसकेलिए जिम्मेदार नेता का पुरजोर विरोध कर रहे हैं ! इस संघर्षमें शामिल सभी साथियोंको -नमन !श्रीराम !  

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

संसद की अवमानना करने वालों को बेनकाब किया जाए !


 प्रगतिशील विचारकों - दार्शनिक सिद्धान्तकारों के अनुसार 'व्यक्ति -विशेष' की बनिस्पत ' विचार विशेष ' की महत्ता ही श्रेष्ठ है। इतिहास गवाह है जब-जब किसी 'व्यक्ति विशेष' को समाज या राष्ट्र से ऊपर माना गया, तब-तब मानव समाज ने बहुत धोखा खाया है। किसी 'व्यक्ति विशेष' के पक्ष -विपक्ष के कारण ही दुनिया में दो बड़े महायुद्ध हो चुके हैं।  भारत जैसे देश को तो इसी व्यक्ति केंद्रित सोच के कारण सदियों की गुलामी भोगनी पड़ी !दुनिया की जिस किसी कौम ने ,राष्ट्र ने, 'विचारधारा की जगह किसी व्यक्ति विशेष' को 'अवतार' या 'हीरो' माना  उस देश और समाज की बहुत दुर्गति हुई है।

जिस किसी प्रबुद्ध कौम या राष्ट्र ने 'व्यक्ति विशेष' की महत्ता के बजाय उसके द्वारा प्रणीत श्रेष्ठ 'मानवीय मूल्यों' को अर्थात ''विचारों' को  महत्व दिया ,उस कौम या राष्ट्र ने अजेय शक्ति हासिल की। व्यक्ति की जगह मानवीय मूल्य , मानवोचित विचार और विवेक को महत्व देने के कारण ही अंग्रेज जाति ने सैकड़ों साल तक अधिकांस दुनिया पर राज किया है। जबकि अपने तानाशाह शासक नेपोलियन की जय- जयकार करने वाली फ़्रांसीसी जनता को एक अंग्रेज जनरल 'वेलिंग्टन' के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। इसी तरह हिटलर की जयजयकार करने वाले जर्मनों की नयी पीढी को उनके पूर्वजों का अंतिम हश्र ,आज भी शर्मिंदा करता है। जनरल तोजो की हठधर्मिता के कारण ही हिरोशिमा और नागाशाकी का भयानक नर संहार हुआ था, जिसका नकारात्मक असर आजभी जापानकी जनता  पर देखा जा सकता है। जो कौम या राष्ट्र इतिहास से सबक नहीं सीखते उनका वजूद हमेशा खतरे में रहता है !

कल्पना कीजिये कि घोड़े के पैर में लोहे की नाल ठुकती देख ,मेंढक भी नाल ठुकवा ले तो क्या होगा ? नाई को हजामत बनाते देख कोई बंदर भी उस्तरा चलादे तो क्या होगा ? सोचिये कि यदि कोई भारतीय नेता आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ,किसी पूर्ववर्ती सामंतयुगीन तानाशाह या बीसवीं सदी के बदनाम 'डिक्टेटर' की नकल करने लगेगा तो क्या होगा ? सदन का नेता और देशका प्रधानमंत्री किसी प्रासंगिक एजेंडे पर संसद में बयान देने के बजाय उसी विषय पर कभी मथुरा ,कभी आगरा और कभी बठिंडा की आम सभा में भाषण देते रहेंगे तो यह सरासर लोकतंत्र का अपमान होगा  !निश्चय ही यह तुगलक बनने की अपवित्र चेष्टा कही जाएगी ! यदि संसद का अनादर होगा तो लोकतंत्र कैसे जीवित रह सकता है ? चूँकि समाजवाद के लक्ष्य की पूर्ती के लिए  लोकतंत्र रुपी धनुष और सर्वहारा वर्ग की एकजुटता का बाण जरूरी है इसलिए लोकतंत्र की सर्वोच्च शक्ति याने भारतीय संसद की गरिमा को अक्षुण बनाये रखना जरुरी है।  संसद की अवमानना करने वालों को बेनकाब किया जाए !

 चूँकि एनडीए सरकार की 'नोटबंदी' योजना का 'जापा' बिगड़ चुका है। विपक्ष को  इस पर 'भारत बंद' करने की कोई जरूरत नहीं है। देश की जनता खुद समझदार है और यदि उसे इस योजना से बाकई हैरानी -परेशानी है या कष्ट हुआ है तो वह ही खुद निपट लेगी। देशके राजनैतिक विपक्ष को इस नोटबंदी पर आइंदा ज्यादा ऊर्जा बर्बाद करने के जरूरत नहीं है। इसके बजाय एकजुट होकर ,प्रधानमंत्री द्वारा लगातार की जा रही संसद की अवमानना पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसके लिए 'बहरत बंद' नहीं बल्कि देशभर में एक दिनका सामूहिक उपवास या भूंख हड़ताल का सर्वसम्मत प्रोग्राम बनाना  चाहिए ! देश की आवाम को संसदीय लोकतंत्र के खतरों से अवगत  कराया जाना चाहिए। वेशक इस 'नोटबंदी' से लगभग सौ निर्दोष जाने गयीं हैं, किन्तु यह भी सच है कि आतंकवाद ,नक्सलवाद , कालेधन पर कुछ तो असर हुआ है। 'अच्छे दिनों' की आशा में देश की जनता तकलीफ  उठाकर भी इन तत्वों को निपटानेके मूडमें है। इसलिए नोटबंदी पर अब ज्यादा तरजीह देनेकी जरूरत नहीं है।  

हालाँकि यह खेदजनक है कि  भारत की अधिकांस जनता इन दिनों एक खास 'व्यक्ति' के भरोसे है। जैसे सिकंदर के आक्रमण के समय पौरुष के भरोसे रहे ,जैसे  मुहम्मद बिन कासिम के हमले के वक्त दाहिरसेन के भरोसे रहे जैसे मुहम्मद गौरी के हमले के समय पृथ्वीराज चौहान के भरोसे रहे ,जैसे बाबर के हमले के समय राणा सांगा के भरोसे रहे , जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी की तिजारत के समय सिराजुददौला -मीरकासिम के भरोसे रहे जैसे अंग्रेजों के आक्रमण के समय बहादुशाह जफर के भरोसे रहे ,वैसे ही इन दिनों भारत की आवाम का एक खास हिस्सा नरेद्र मोदी  के भरोसे है। तो दूसरा हिस्सा भी केवल उनकी आलोचना में ही व्यस्त है। नीतियों-कार्यक्रमों पर अभी बहुत कम बात हो रही है। श्रीराम तिवारी !

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

का वर्षा जब कृषि सुखाने। समय चुके पुनि का पछताने।। ''

नोटबंदी के कारण इतनी सारी मौतें हो जाने के बाद ,निरीह जनता की करोड़ों बेबस आँखों से गंगा-जमुना बह जाने के बाद , नोटबंदी योजना में लगातार संशोधन रुपी सैकड़ों थेगड़े लग जाने के बाद ,डॉ मनमोहनसिंह उर्फ़  'मौनी बाबा' अब जाकर राज्य सभा में बोले हैं ! जो व्यक्ति १० सालतक देश का प्रधानमंत्री रहा हो और जिसकी  रहस्यमय 'चुप्पी' के कारण जुमलेबाजों को सत्ता नसीब हुई हो, जो सन्सार के प्रमुख अर्थशास्त्रियों में से एक हो , जो विश्वबैंक का डायरेक्टर और अंतर्राष्टीय मुद्राकोष का सलाहकार रहा हो -उसका इस तरह देर से मुखर होना किस काम का ?  गोस्वामी तुलसीदास जी बाबा शायद इन्ही के लिए कह गए हैं -'' का वर्षा जब कृषि सुखाने। समय चुके पुनि का पछताने।। ''  For more reading please visit on www.janwadi.blogspot.com

यदि आप दूसरों के सतत सहयोगी बने रहेंगे तो !


यदि आप  वरिष्ठजनों ,सुह्रदयजनों और अभिभावकों के प्रति कृतज्ञता भाव रखते हैं तो आप को नैसर्गिक रूप से तत्काल ख़ुशी प्राप्त होगी। ज्यों ही आप नकारात्मक विचार तरंगों को प्रतिबंधित करते हैं ,अपना मन अनावश्यक मुद्दोंसे हटाकर उसे प्रकृति दर्शन ,आत्मदर्शन की ओर ले जाते हैं ,अथवा किसी के हितका विचार धारण करते हैं, खुशी की लहर तुरन्त दौड़ी चली आती है। छोटे -छोटे बच्चों की किलकारियों ,सितारों से सजी चांदनी रात और किसी मनोअनुकूल स्वजन से सहज वार्तालाप निश्चय ही सतत ऊर्जावान बनाते हैं। यदि आप किसी भी कार्य को करने से पहले यह देख लें कि वह अनैतिक तो नहीं है ,वह किसी अन्य के अहित का कारण तो नहीं बनेगा और उसे करने से किसी का कुछ लाभ है या नहीं ,तभी आप उस कार्य को करें। अन्यथा 'उससे बेहतर तो 'अकर्म 'की स्थिति ही उचित है। इस तरह जब आप निर्भीक होकर ख़ुशीमन से कोई कार्य करते हैं तो आपको गुणात्मक रूप से अनन्य ख़ुशी मिलती है। यदि आप खुशमिजाज रहेंगे ,दूसरों के सतत सहयोगी बने रहेंगे तो स्वाभाविक रूप से सर्वप्रिय बने रहेंगे। इस तरह आप अपने मन को  स्थिर करने में भी सफल हो सकते हैं,जो विपश्यना ,ध्यान और योग इत्यादि में मददगार सावित होगा। खुशमिजाज व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवनमें तो सफल होता ही है,किन्तु उसका सार्वजनिक जीवन भी भव्य और खुशहाल हो जाता है। वह दुःख ,क्लेश और अभाव में प्रशांतचित्त होकर चुनौतियों का सामना करता है। ऐंसा व्यक्ति भले ही अनीश्वरवादी ही क्यों न हो वह भौतिक,आध्यात्मिक और सर्व - सामाजिक  जीवन भी अक्षुण बनाता हैं । श्रीराम तिवारी !

रविवार, 20 नवंबर 2016


 इंदौर से हर सोमवार को निकलने वाला 'सकारात्मक सोमवार' का आज २१ नवम्बर [सोमवार] का अंक सामने है। इसका प्रथम पृष्ठ पूरा पढ़ने का माद्दा मुझमे नहीं है। जिसमे पूरा पेज पढ़ने की हिम्मत हो वह बड़ा जिगरवाला है  ! पुखरायाँ के समीप हुई भीषण रेल दुर्घटना की मार्मिक रिपोर्ट में उसका  सचित्र वर्णन, १०० से ऊपर दर्दनाक मौतें, सैकड़ों मरणासन्न - घायल , दर्दनाक चीख पुकार इसमें सब कुछ नकारात्मक और मर्मान्तक है ! हे नरेंद्र !हे प्रभु  ! इस देश पर रहम करो !

 इधर भारत के सत्ताधारी नेता जुमलेबाजी में ,जनता को परेशान करने या भरमाने की जद्दोजहद में जुटे हैं ,उधर   तुर्की का राष्ट्रपति एर्दोगान पाकिस्तान आया और पाकिस्तानी संसद में भाषण देकर चला गया। इस भाषण में एर्दोगान ने कश्मीर के सन्दर्भ में पाकिस्तान की कारिस्तानी का समर्थन किया है और भारत के हितों पर खुल्लम -खुल्ला चोट की है ,भारत के नकली 'राष्ट्रवादी' नेता ,उनके 'चारण - भाट और लोभी लालची स्वामी -बाबा लोग केवल विपक्ष को गरियाने में  जुटे हैं !

शनिवार, 19 नवंबर 2016


नोटबंदी अथवा सरकार के किसी अन्य नीतिगत फैसले से यदि जनता को या बैंक वालों को कोई तकलीफ होती है ,यदि लोग  मरने लगते हैं तो इसमें सरकार का कोई असुर नहीं। धार्मिक व्याख्या के अनुसार सभी प्राणी अपने -अपने किये का फल भोग रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी भी अपने रामचरितमानस में यही  कह गए हैं:-

''कोउ न काउ सुख दुखकर दाता। निजकृत कर्म भोग सब भ्राता।।

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मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक याने नोटबंदी के इस 'महायज्ञ' में जो लोग स्वाहा हो रहे हैं, वे जब तक कतार में खड़े थे तब तक देशभक्त थे [राम माधव और राजनाथसिंह के अनुसार] जब ये देशभक्त कतार में खड़े -खड़े मर गए तो सत्ताधारी लोग इन दिवंगतों को शहीद  मानने से इनकार कर रहे है। नेता और मंत्री इन मौतों पर व्यंगात्मक टिपण्णी करे रहे हैं कि जनता को कोई परेशानी नहीं ! क्या यही लोकतंत्र है ? क्या  यही इंसानियत है ?

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

सरकार ने होम वर्क नहीं किया !


केंद्र सरकार की 'नोटबंदी' योजना से आरबीआई के पास अरबों रूपये पुराने नोटों की शक्ल में जमा हो चुके हैं !इस योजना के लागु होने से सरकार के खजाने में जमा हुई करेंसी में कितना कालाधन जमा हुआ यह तो सरकार ही जाने ,किन्तु इस आपाधापी में जो सैकड़ों जाने गईं हैं, उनमें  कालेधन वाला 'देशद्रोही' शायद एकभी नहीं था।   मोदी जी को मालूम हो कि उनकी इस नोटबंदी से एक नया आपराधिक समाज पैदा हो गया है। कमीशनखोर नए दलाल-भृष्ट बैंक कर्मचारी -अधिकारी और 'अदृष्यजगत' के बेईमानों ने आपण कालाधन सुरक्षित कर लिया है।   ईमानदार और बेकसूर लोग सरकार कीआधी अधूरी तैयारी और 'कुनीति' के कारण लाइन में लगे-लगे मरे हैं या मर रहे हैं। क्या उन्हें 'शहीद' का  दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए ? क्या उन्हें मरणोपरान्त वही सम्मान नहीं मिलना चाहिए जो देश के लिए जान देनेवालों को दिया जाता है?

सरकार और उसके चाटुकारों का ढपोरशंखी रवैया न जाने कितनी और जाने लेगा ? सरकार ने अपनी नोटबंदी पर इतने तदर्थ पैबन्द याने थेगड़े लगाये कि आज कोलकाता उच्च न्यायालय को भी कहना पड़ा कि '' सरकार ने होम वर्क नहीं किया'' । केवल ढींगे हाँकने या कोरी लाठी पीटने से साँप नहीं मरते। अभी तक एक भी कालेधन वाला मगरमच्छ तो क्या छटाक भर की मछली भी नहीं पकड़ सके हैं । बड़े आश्चर्य की बात है कि नोटबंदी बनाम 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' पर सरकार और उसके 'चमचों' को बिखरे हुए विपक्ष का भौंथरा विरोध भी सहन नहीं हो रहा है। यदि इस नोटबंदी  का मकसद कश्मीरी पत्थरबाजों को नसीहत देना था तो पूरे देश को दाँव पर क्यों  लगाया ?  यदि इस मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक का मकसद ,पाकिस्तान में छपने वाली नकली करेंसी को रोकना है तो यह बात तो सबको मालूम है कि पाकिस्तान की आईएसआई नकली भारतीय मुद्रा छापकर भारत में खपाती है , यह खबर पूरी दुनिया को वर्षों से मालूम है , क्या यह बात शरीफ के घर चाय पीते वक्त मोदी जी भूल गए थे ?

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

आप बेक़सूर लोगों की जान क्यों ले रहे हैं?


अभी -अभी श्रीमतीजी को अस्पताल ले गया ,वहाँ अधिकांस लोग इलाज के लिए रुपयों की मारामारी और पुराने नोटों को बदलने की परेशानी बयां  कर रहे थे।  मैंने भी अपना अनुभव बताया कि 'नोटबंदी' से मुझे तो कोई खास परेशानी नहीं हुई। लोगों ने आश्चर्य से मेरी और देखा और पूँछा  वो कैसे ? मैंने कहा कि मेरे पास काला और गोरा दोनों ही प्रकार का धन नहीं है। रही बात बैंक में जमा मामूली बचत खाते से निकासी की तो सीनियर सिटीजन्स   की हैसियत से जहाँ भी जाता हूँ ,एटीएम की लाइन वाले अपने आप रास्ता छोड़ देते हैं। यह सुनकर मेरे परिचित डॉक्टर ने सवाल किया कि फिर आप अपने ब्लॉग पर और फेसबुक पर मोदी जी की 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' का विरोध क्यों करते हैं ?

मैंने उन्हें बताया कि यदि पड़ोस के मकान में आग लगी हो तो आप को चैन से सोने की मूर्खता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वह मुसीबत की आग किसी को नहीं छोड़ती। रतलाम में जवान बेटा अपने बाप को लाइन में खड़ा कर आधार कार्ड लेंने घर गया, कार्ड खोजने और नहीं मिल पाने के कारण घबराहट से उसका हार्ट फ़ैल हो गया , पोस्ट मार्टम में डॉक्टरों ने बताया कि मृतक बंदा दो दिनों से भूंखा था। क्योंकि उसका गाँव रतलाम से बहुत दूर है और इधर बैंक में लाइन इतनी लम्बी कि उसका नम्बर आते -आते नोट खत्म हो जाते हैं । बेटे की मौत की खबर सुनकर बाप अभी तक सदमें में है।  यह एक घटना है ,इसी तरह भारत में अब तक लगभग ४४ लोग  इस नोटबंदी की भेंट चढ़ चुके हैं ! वेशक  इस नोटबंदी से मुझे कोई परेशानी नहीं है ! जबकि नक्सली और आतंकी बहुत परेशान हैं। हजार-हजार के नोटों की माला धारण करने वाली नेत्रियां और नेता भी परेशान हैं, किन्तु उन्हें छकाने के लिए आप बेक़सूर लोगों की जान क्यों ले रहे हैं ?  इसके अलावा ओएनजीसी को एक लाख करोड़ का चूना लगाने वाले अम्बानी ,बैंकों को चूना लगाने वाले विजय माल्या ,अरबों का हवाला -घोटाला करने वाले मित्रवर अडानी की काली सम्पदा को सफ़ेद कर चुकने  के बाद यह 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' केवल प्रहसन बनकर रह गयी है। इसलिए इसके समर्थन या विरोध का बबाल खड़ा करने के बजाय जनता की परेशानी पर तुरन्त  ध्यान दिया जाना चाहिए ! श्रीराम तिवारी ! 

सोमवार, 14 नवंबर 2016

भरतखण्डे उर्फ़ जम्बूदीपे उर्फ़ आर्यावर्त उर्फ़ हिन्दुस्तान उर्फ़ इंडिया उर्फ़ भारतवर्ष में 'कालेधन' की वजह से  समुचित विकास नहीं हो पा रहा है।देश के दुश्मनों द्वारा नकली मुद्रा [कालाधन]छापकर भारत में आतंकवाद - अलगाववाद को बढ़ावा दिया जारहा हैऔर तमाम किस्मके आर्थिक संकट केलिए यह 'कालाधन'ही जिम्मेदार है।भारत के सत्तारूढ़ नेतत्व का दृढ़ विश्वास है कि हजार-पांच सौ की 'नोटबंदी' से सब कुछ ठीक हो जाएगा।  
'वेदांत दर्शन' के कार्यकरण -सिद्धांतानुसार  कालाधन 'कारण' है और नोटबंदी' कार्य है। और यह नोटबन्दी रुपी कार्य ही भारत में वर्तमान 'मुद्रा संकट' रुपी कार्य का कारण बन गया है। इस 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' की कृपा से देश के निम्न मध्यम वर्ग का दिमाग चकरघिन्नी हो रहा है। देश में  करोड़ों ईमानदार लोग होंगे जिन्हें अभी तक 'नये नोटों ' के दर्शन भी नहीं हुए हैं ,किन्तु आज की ताजा खबर है कि तेलांगना में कुछ 'बदमाशों' को २००० रू० के नए 'नकली नोट' चलाते पकड़ा गया है। समझ में नहीं आ रहा है कि अच्छे दिन आये हैं या कि देश में अघोषित आपातकाल चल रहा है !

गुरुवार, 10 नवंबर 2016


  प्रेसिडेंट पद पर डोनाल्ड ट्रम्प की जीत से  न केवल अमेरिका में बल्कि पूरी दुनिया में अचरज का माहौल  है। जिन लोगों ने हिलेरी की जीत  की भविष्यवाणी की थी और जिन्होंने  ट्रम्प को  'मसखरा' या   'लम्पट' कहा था वे अभी कोमा में हैं। वास्तविकता यह है कि साम्राज्यवादी मुल्क अमेरिका  पूरा का पूरा 'भाँग का कुआँ' ही है ,वहाँ कोई भी प्रेजिडेंट बने, लेकिन सत्ता केवल 'आवारा पूँजी' के निर्देशानुसार ही चलेगी ! अब रही बात तथाकथित सभ्य महिला हिलेरी क्लिंटन की दर्दनाक हार की ,तो पांच साल पहले इन्ही ट्रम्प महाशय ने कहा था ''अमेरिकी महा बेवकूफ होते हैं ''! श्रीराम तिवारी !

 इंदौर ,दिनांक १० नवम्बर -२०१६ ,दैनिक भास्कर की खबर है कि '' विगत आधी रात के बाद से सुबह ४ बजे तक  इंदौर में ५० हजार रुपया प्रति १० ग्राम के भाव से १०० किलो सोना खरीदा गया ! '' यह बताने की जरूरत नहीं कि खरीददार कौन थे ? इनमें से अधिकांस वे  लोग थे जो  कालेधन के मालिक हैं और दिन में अपने आपको 'राष्ट्रवादी' या  सेक्यूरिस्ट 'कहते हैं।  यदि अकेला इंदौर सराफा ही  मात्र तीन घण्टे में ५०० ००००००० /- करोड़ के  कालेधन को सफ़ेद में बदल सकता है,तो देश के अन्य शहरों -और कसवों का कुल योग कितना होगा ?  भारत के धर्मनिरपेक्ष ,ईमानदार और  लाइन में लगकर ,तकलीफ उठाकर २-४ हजार रूपये के लिए पसीना बहाने वाले नर-नारी  सवाल कर रहे हैं कि  प्रधानमंत्री मोदी जी  कहीं आपका यह मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक भी संदेहास्पद तो नहीं है ? और इसकी भी क्या  गारन्टी है कि  पाकिस्तान का एएसआई और आतंकी निजाम  आइंदा नकली नोट छापकर भारत भेजना बंद कर देगा ? जब व्हाइट कॉलर लोग नयी तकनीक ईजाद कर सकते हैं तो आतंकी  ऐंसा क्यों  नहीं कर सकते  ? श्रीराम तिवारी !
  

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ कल्पना का नाम 'ईश्वर 'है !

सैकड़ों साल पहले जब नीत्से ने कहा था कि ''ईश्वर मर चुका है '' तब  फेस बुक ,ट्विटर और वॉट्सअप नहीं थे , वरना साइंस पढ़े -लिखे और साइंस को ही आजीविका बना चुके धर्मांध सपोले उस 'नीत्से' को भी डसे बिना नहीं छोड़ते। आज चाहे  आईएसआईएस के खूंखार जेहादी हों ,चाहे पाकिस्तान प्रशिक्षित कश्मीरी आतंकी हों ,चाहे जैश ए मुहम्मद और सिमी के समर्थक हों या जिन्होंने दाभोलकर,पानसरे ,कलबुर्गी और अखलाख को मार डाला ऐंसे स्वयम्भू कट्ररपंथी हिंदुत्ववादी हों ये सबके सब 'नीत्से' की स्थापना के जीवन्त प्रमाण हैं।


मानव सभ्यता के इतिहास में बेहतरीन मनुष्यों द्वारा आहूत उच्चतर मानवीय मूल्यों को धारण करने की कला का नाम 'धर्म' है !मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ कल्पना का नाम 'ईश्वर' है। भारतीय वांग्मय के 'धर्म' शब्द का अर्थ 'मर्यादा को धारण करना' माना गया है। जबकि दुनिया की अन्य भाषाओं में 'मर्यादा को धारण करना'याने 'धर्म' शब्द का कोई वैकल्पिक शब्द ही नहीं है। जिस तरह मजहब ,रिलिजन  इत्यादि शब्दों का वास्तविक अर्थ या अनुवाद 'धर्म' नहीं है। उसी तरह 'परमात्मा या ईश्वर जैसे शब्दों का अभिप्राय भी अल्लाह  या गॉड कदापि नहीं है। कुरान के अनुसार 'अल्लाह' महान है और मुहम्मद साहब उसके रसूल हैं तथा अल्लाह ही कयामत के रोज सभी मृतकों के उनकी नेकी-बदी के अनुसार फैसले करता   है।इसी तरह  बाईबिल का 'गॉड ' भी अलग किस्म की थ्योरी के अनुसार पूरी दुनिया का निर्माण महज ६ दिनों में करता है और अपने 'पुत्र' ईसा को शक्ति प्रदान करता है की धरती के लोगों का उद्धार करे। जबकि गीता ,वेद और उपनिषद का कहना है की 'आत्मा ही परमात्मा है' ''तत स्वयं योग संसिद्धि कालेन आत्मनि विन्दति''या ''पूर्णमदः पूर्णमिदम ,पूर्णात पूर्णम उदचचते। पूर्णस्य पूर्णमादाय ,पूर्णम एवाविष्य्ते '' याने  प्रत्येक जीवात्मा का अंतिम लक्ष्य अपनी पूर्णता को प्राप्त करना है ,अर्थात परमात्मा में समाहित हो जाना है। इस उच्चतर दर्शन को श्रेष्ठतम मानवीय सामाजिक मूल्यों से संगति बिठाकर जो जीवन पद्धति बनाई गयी उसे 'सनातन धर्म' कहते हैं। कालांतर में स्वार्थी राजाओं ,लोभी बनियों और पाखण्डी पुरोहितों ने  अपने निजी स्वार्थ के लिए धर्मको शोषण-उत्पीड़न का साधन बना डाला। उन्होंने पवित इस धर्म को जात -पांत ,ऊंच -नीच घृणा ,अहंकार और अनीति का भयानक कॉकटेल बना डाला जिसे सभी लोग अब 'अधर्म' कहते हैं। इस अधर्म में जब अंधराष्ट्रवाद और धर्मान्धता का बोलवाला हो  गया तब   कार्ल मार्क्स ने उसे अफीम कहा था । धर्म-मजहब की यह अफीम इन दिनों  पूरी दुनिया में इफरात से मुफ्त में मिल रही है।  श्रीराम तिवारी !