शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

अब भारत भी एक अमीर देश हो गया है।


विश्व बैंक के एक सर्वे में दुनिया के अमीर देशों की सूची जारी हुई है। अमेरिका पहले स्थान पर है ,रूस नम्बर दो पर ,चीन नंबर तीन पर और भारत का नम्बर सातवाँ है। दुनिया के दो सौ बारह राष्ट्रों में यदि मेरे भारत का नम्बर सातवां  है तो यह कुछ कम उपलब्धि नहीं है। अपनी पीठ ठोकने लायक  बहुत है। काश ! रियो ओलम्पिक की पदक तालिकामें भी भारतका यही नंबर होता ! बहरहाल रियो ओलम्पिक में हुई  भारत -दुर्दशा की राष्ट्रीय शर्म को हवा में उड़ाकर, मैं  भारत के उदीयमान आर्थिक क्षितिज की ओर देख रहा हूँ।

विश्वके प्रमुख अमीर देशोंके साथ ७ वें नंबर पर भारतको देखकर ,मुझे सूझ नहीं पड़ रहा कि मैं हँसू या रोऊँ !क्योंकि पूँजीवादी विकास का एकमात्र अर्थ है कि इस विकास के दुष्परिणाम का फल देश की गरीब जनता को ही भुगतना पड़ता है। जैसे कि मिट्टी का ऊँचा टीला या चबूतरा बनाने के लिए आसपास की जमीन से ही मिट्टी खोदकर उस टीले को ऊंचा किया जाता है ,उसी तरह यदि  देश में कुछ लोग ज्यादा अमीर बनेगें तो उनके हिस्से में जो धन की बाढ़ आई वह धन उनके हिस्से का ही होगा जो कंगाल होते जा रहे हैं । यद्द्पि इस सूचना से मुझे खुश होना चाहिए था , कि भारत अब और जायद अमीर देश हो गया है। किन्तु इस खबर के वास्तविक अर्थ  की समझ रखने वाला कोईभी  सच्चा भारतीय  खुश होने के बजाय कुपित ही होगा। क्योंकि इस समृद्धि का अर्थ स्पष्ट है कि ज्यादा लोगों के आर्थिक शोषण से ही  चन्द अमीर घरानों -कार्पोरेट्स के जमाखातों में आर्थिक इस कदर लुभावने हो गए  कि लगा भारत  भी एक अमीर देश हो गया है। 

क्या बिडम्बना है कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में दो-चार खरबपति ,दस- बीस अरबपति और मात्र ३%  इनकम टैक्स पेई हों ,जिस देश में ४०% जनता बीपीएल /एपीएल में झूल रही हो ,जिस देश की ६०% से ज्यादा आबादी अभी भी पीने योग्य पानी के लिए तरस रही हो ,जिस देश की ७०%जनता स्वास्थ सेवाओं से वंचित हो ,जिस देशकी आधी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर हो ,उस देश को यदि अमेरिका ,रूस ,चीन ,ब्रिटेन, जर्मनी,जापान,के बाद स्थान मिला हो तो खुश होने के बजाय सर पीटने का मन करता है।


गुरुवार, 25 अगस्त 2016

लोग पार्थसारथी - योगेश्वर श्रीकृष्ण को भूलकर माखनचोर के पीछे पड़े रहते हैं।


हिन्दू पौराणिक मिथ अनुसार  भगवान् विष्णु के दस अवतार माने गए हैं। कहीं-कहीं २४ अवतार भी माने गए हैं।  अधिकांस हिन्दू मानते हैं कि केवल श्रीकृष्ण अवतार ही  भगवान् विष्णु का पूर्ण अवतार है। हिन्दू मिथक अनुसार श्रीकृष्ण से पहले विष्णु का 'मर्यादा पुरषोत्तम' श्रीराम अवतार हुआ और वे केवल मर्यादा के लिए जाने गए। उनसे पहले परशुराम का अवतार हुआ,वे  क्रोध और क्षत्रिय -हिंसा के लिए जाने गए। उनसे भी पहले 'वामन' अवतार हुआ जो न केवल बौने थे अपितु दैत्यराज प्रह्लाद पुत्र राजा - बलि को छल से ठगने के लिए जाने गए। उनसे भी पहले 'नृसिंह'अवतार हुआ ,जो आधे सिंह और आधे मानव रूप के थे अर्थात पूरे मनुष्य भी नहीं थे। उससे भी पहले 'वाराह' अवतार हुआ जो अब केवल एक निकृष्ट पशु  ही माना जाता है। उससे भी पहले कच्छप अवतार हुआ ,जो समुद्र मंथन के काम आया। उससे भी पहले मत्स्य अवतार हुआ जो इस वर्तमान ' मन्वन्तर' का आधार  माना गया।डार्विन के वैज्ञानिक विकासवादी सिद्धांत की तरह यह 'अवतारवाद' सिद्धांत भी वैज्ञानिकतापूर्ण है।  

आमतौर पर विष्णु के ९ वें अवतार 'गौतमबुद्ध ' माने गए हैं, दशवाँ कल्कि अवतार होने का इन्तजार है। लेकिन हिन्दू मिथ भाष्यकारों और पुराणकारों ने श्री विष्णुके श्रीकृष्ण अवतार का जो भव्य महिमामंडन किया है वह न केवल  भारतीय मिथ -अध्यात्म परम्परा में बेजोड़ है ,बल्कि विश्व के तमाम महाकाव्यात्मक संसार में भी श्रीकृष्ण का चरित्र ही सर्वाधिक रसपूर्ण और कलात्मक  है। श्रीमद्भागवद पुराण में वर्णित श्रीकृष्ण के गोलोकधाम गमन का- अंतिम प्रयाण वाला दृश्य पूर्णतः मानवीय  है। इस घटना में कहीं कोई दैवीय चमत्कार नहीं अपितु कर्मफल ही झलकता है। अपढ़ -अज्ञानी  लोग कृष्ण पूजा के नाम पर वह सब ढोंग करते रहते हैं जो कृष्ण के चरित्र से मेल नहीं खाते। आसाराम जैसे कुछ महा धूर्त लोग अपने धतकर्मों को जस्टीफाई करने के लिए  कृष्ण की आड़ लेकर कृष्णलीला या रासलीला को बदनाम करते रहते हैं। श्रीकृष्ण ने तो इन्द्रिय सुखों पर काबू करने और समस्त संसार को निष्काम कर्म का सन्देश दिया  है।

आपदाग्रस्त द्वारका में जब यादव कुल आपस में लड़-मर रहा था । तब दोहद- झाबुआ के बीच के जंगलों में श्रीकृष्ण किसी मामूली भील के तीर से घायल होकर  निर्जन वन में एक पेड़ के नीचे कराहते हुए पड़े थे । इस अवसर पर न केवल काफिले की महिलाओं को भीलों ने लूटा बल्कि गांडीवधारी अर्जुन का धनुष भी भीलों ने  छीन लिया । इस घटना का वर्णन किसी लोक कवि ने कुछ इस तरह किया है :- जो अब कहावत  बन गया है ।

        ''पुरुष  बली नहिं  होत है ,समय होत बलवान।

        भिल्लन लूटी गोपिका ,वही अर्जुन वही बाण।।''

अर्थ :-  कोई भी व्यक्ति उतना महान या  बलवान नहीं है ,जितना कि 'समय' बलवान होता है। याने वक्त सदा किसी का एक सा नहीं रहता और मनुष्य वक्त के कारण  ही कमजोर या ताकतवर हुआ करता है। कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में, जिस गांडीव से अर्जुन ने हजारों शूरवीरों को मारा ,जिस गांडीव पर पांडवों को बड़ा अभिमान था ,वह गांडीव भी श्रीकृष्णकी रक्षा नहीं कर सका। दो-चार भीलोंके सामने अर्जुनका वह गांडीव भी बेकार साबित हुआ।  परिणामस्वरूप 'भगवान' श्रीकृष्ण घायल होकर 'गौलोकधाम' जाने का इंतजार करने लगे। 

पराजित-हताश अर्जुन और द्वारका से प्राण बचाकर भाग रहे  यादवों के स्वजनों- गोपिकाओं को भूंख प्यास से तड़पते  हुए  मर जाने का वर्णन मिथ- इतिहास जैसा चित्रण नहीं लगता। यह कथा वृतांत कहीं से भी चमत्कारिक  नहीं लगता। वैशम्पायन वेदव्यास ने  श्रीमद्भागवद में  जो मिथकीय वर्णन प्रस्तुत किया है ,वह आँखों देखा हाल जैसा लगता है। इस घटना को 'मिथ' नहीं बल्कि इतिहास मान लेने का मन करता है। कालांतर में चमत्कारवाद से पीड़ित,अंधश्रद्धा में आकण्ठ डूबा हिन्दू समाज इस घटना की चर्चा ही नहीं करता। क्योंकि इसमें ईश्वरीय अथवा मानवेतर  चमत्कार  नहीं है। यदि विष्णुअवतार- योगेश्वर श्रीकृष्ण एक भील के हाथों घायल होकर मूर्छित पड़े हैं तो उस घटना को अलौकिक कैसे कहा जा सकता है ? जो मानवेतर नहीं वह कैसा अवतार ? किसका अवतार ? किन्तु अधिकांस सनातन धर्म अनुयाई जन द्वारकाधीश योगेश्वर श्रीकृष्ण को छोड़कर , लोग पार्थसारथी - योगेश्वर  श्रीकृष्ण को भूलकर   माखनचोर  के पीछे पड़े हैं। लोग श्रीकृष्ण के 'विश्वरूप'को भी पसन्द नहीं करते उन्हें तो   'राधा माधव' वाली छवि ही भाती  है । रीतिकालीन कवि बिहारी ने कृष्ण विषयक इस हिन्दू आस्था का वर्णन इस तरह किया है :-

     मोरी  भव  बाधा  हरो ,राधा  नागरी  सोय।

    जा तनकी  झाईं परत ,स्याम हरित दुति होय।।

   या

'' मोर मुकुट कटि काछनी ,कर मुरली उर माल।

 अस बानिक मो मन बसी ,सदा  बिहारीलाल।। ''

अर्थात :- जिसके सिर पर मोर मुकुट है ,जो कमर में कमरबंध बांधे हुए हैं ,जिनके हाथों में मुरली है और वक्षस्थल पर वैजन्तीमाला है , कृष्ण की वही छवि  मेरे [बिहारी ]मन में सदा निवास करे !

कविवर रसखान ने भी इसी छवि को बार-बार याद किया है।

  'या लकुटी और कामरिया पर राज तिहुँ पुर को तज डारों '

या

 'या छवि को रसखान बिलोकति बारत कामकला निधि कोटि '

संस्कृत के भागवतपुराण -महाभारत, हिंदी के प्रेमसागर -सुखसागर और गीत गोविंदं तथा कृष्ण भक्ति शाखा के अष्टछाप -कवियों द्वारा वर्णित कृष्ण लीलाओं के विस्तार अनुसार  'श्रीकृष्ण' इस भारत भूमि पर-लौकिक संसार में श्री हरी विष्णु के सोलह कलाओं के सम्पूर्ण अवतार थे। वे न केवल साहित्य ,संगीत ,कला ,नृत्य और योग विशारद थे। अपितु वे इस भारत भूमि पर पहले  क्रांतिकारी थे जिन्होंने इंद्र  इत्यादि वैदिक देवताओं के  विरुद्ध जनवादी शंखनाद किया था। खेद की बात है कि श्रीकृष्ण के इस महान क्रांतिकारी व्यक्तित्व को भूलकर लोग उनकी बाल छवि वाली मोहनी मूरत पर ही फ़िदा होते रहे । श्रीकृष्ण ने  'गोवर्धन पर्वत क्यों उठाया ? यमुना नदी तथा गायों की पूजा के प्रयोजन क्या था ?  इन सवालों का एक ही उत्तर है कि श्रीकृष्ण प्रकृति और मानव समेत तमाम प्रणियों के शुभ चिंतक थे।  क्रांतिकारी  श्रीकृष्ण ने कर्म से ,ज्ञान से और बचन से मनुष्यमात्र को  नई  दिशा दी। उन्होंने विश्व को कर्म योग और भौतिकवाद से जोड़ा।  शायद इसीलिये उनका चरित्र विश्व के तमाम महानायकों में सर्वश्रेष्ठ है। यदि वे कोई देव अवतार नहीं भी थे तो भी वे इतने महान थे कि उनके मानवीय अवदान और चरित्र की महत्ता किसी ईश्वर से कमतर नहीं हो सकती ।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सभी मित्रों को शुभकानाएं ! जय माधव ,जय जगत ! जय जगदीश्वर !

श्रीराम तिवारी !

सोमवार, 22 अगस्त 2016

पाकिस्तान में 'थेंक्स'कहना भी देशद्रोह है।


विगत १५ अगस्त को भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने लालकिले से राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कश्मीर में पाकिस्तान के हिंसक हस्तेक्षेप का जबाब देते हुए पाकिस्तान अधिकृत गिलगित ,बलूचिस्तान और पीओके में पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा किये जा रहे दमन का उल्लेख किया था। पाकिस्तान के तीन बड़े निर्वासित बलूच नेताओं - बर्ह्मदग बुगती ,हर्बियार मरीम और करीमा बलूच ने तब मोदी जी को 'थैंक्स' कहा था। इस धन्यवाद से नाराज होकर पाकिस्तान सरकार ने इन तीनों नेताओं पर देशद्रोह के मुकद्दमें ठोंक दिए हैं । इस घटना से जाहिर होता है कि पाकिस्तान में  किसी  विरोधी देश या विरोधी व्यक्ति को धन्यवाद देने का  अधिकार नहीं है। दुनिया के किसी भी लोकतान्त्रिक देश में ,अमेरिका में , ब्रिटेन में या  भारत में रहने वाला हर शख्स अपने दुश्मन राष्ट्र की तारीफ  या अपने नेताओं की निंदा कर सकता  है । विगत दिनों अमेरिका के  विदेश सचिव ने तो रूसी राष्ट्रपति पुतिन की जमकर तारीफ़ कर डाली और पुतिनको ओबामासे बेहतर बताया। रोचक बात यह है कि यह रहस्योद्घाटन   खुद भारत के प्रधानमंत्री मोदी से शेयर किया गया ।

 भारत के कश्मीरी अलगाववादी - 'पत्थरबाजों'ने  कश्मीर में हजारों कश्मीरी पंडितों को मार डाला ,लाखोंको बेघर कर दिया ,उन्हें कश्मीर छोड़ने को मजबूर किया ,उनकी बहिन -बेटियों के साथ बुरा सलूक किया। इसके बदले में जेएनयू ने उन्हें सम्मान दिया। जबकि  कश्मीरी पुलिस और भारतीय फ़ौज पर यही दहशतगर्द अक्सर धोखे से हमले करते रहते हैं। किन्तु  भारतीय लोकतंत्र की महानता है कि फिर भी हम नरमाई से पेश आ रहेहैं।   'बातचीत' सुलह सफाई से काम ले रहे हैं। यदि ये कश्मीरी पत्थरबाज पाकिस्तान में होते तो अभी तक 'जहन्नुम को प्यारे हो गए होते ' ! इन उग्रवादियों को याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान में 'थेंक्स'कहना भी देशद्रोह है।


  'रियो डी जेनेरियो' -ओलम्पिक समापन उपरान्त  जारी अंतिम पदक सूची के अनुसार अमेरिका अपने प्रथम स्थान पर नाबाद है। लेकिन जो देश  विगत चार ओलम्पिक खेलों से लगातार नंबर दो पर हुआ करता था ,वो चीन अब नंबर तीन पर आ गया है। उसकी जगह ब्रिटेन नंबर दो पर आ गया है। १९८०  के ओलम्पिक में  तो सोवियत संघ नंबर वन था। किंतु सोवियत विखण्डन के उपरान्त वाला रूस अब ५ -६ नंबर पर खिसक गया है। लेकिन यदि उसके बिखरे फेडरल राष्ट्रों -रूस ,यूक्रेन,जार्जिया,उजवेगस्तान,अजरवेजान,तुर्कमेनिस्तान इत्यादि  के मेडल एक साथ जोड़ें जाएँ ,तो यह कुल योग अमेरिका को मिले कुल पदकों  से भी ज्यादा होगा ।अर्थात 'सोवियतसंघ'  यथावत होता तो रियो ओलम्पिक में  वही नबर वन होता। और अमेरिका नंबर दो पर  ही होता।

उधर चीन के खिलाडियों  और चीन सरकार ने खेलों के लिए इस ओलम्पिक में जी जान लगा दी थी। चीनियों का मकसद था कि रियो में चीन नम्बर दो पर आये ;और अमेरिका को पीछे छोड़ दे। चीन चौबे से छब्बे तो नहीं बन पाया किन्तु दुब्बे जरूर बन गया। क्योंकि  ब्रिटेन  ने दूसरा स्थान छीन लिया है। जबकि १९९६ में ब्रिटेन को सिर्फ एक स्वर्ण पदक मिला था। उससे नसीहत लेकर ब्रिटिश सरकार ने खेल विषयक नीतियाँ और कार्यकर्मों में कुछ खास परिवर्तन किये थे , परिणामस्वरूप रियो ओलम्पिक में ब्रिटिश खिलाडियों ने चीनी खिलाडियों से भी बेहतर प्रदर्शन  किया है । और अब  ब्रिटेन नंबर दो पर है । भारत की मोदी सरकार ने विगत सवा दो साल में जो कुछ किया उसका परिणाम सबके सामने है।  पहले आधा दर्जन मेडल लाया करते थे ,इस बार केवल दो पदकों में ही सरकार और खेल प्रेमी गदगद हो रहे हैं। पुराने और परम्परागत भारतीय भृष्ट  खेल प्रबधन पर कोई लगाम नहीं लगाई गयी।  पुराने भृष्टों की जगह अपने 'संघनिष्ठ' नए भृष्ट  अफसरों और मक्कार नेताओं  को खेल प्रबधन सौंप कर  केंद्र सरकार चैन की नींद सोती रही ।  सवा दो साल केवल ठकुर सुहाती ही बर्बाद कर दिए !अब दो पदकों को देख-देख ऐंसे किलक रहे मानों क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान को हरा दिया हो !श्रीराम !

रविवार, 21 अगस्त 2016

भृष्ट सिस्टम -मुर्दाबाद


   सवा सौ करोड़की आबादी वाला हमारा प्यारा भारत -दुनिया का तथाकथित सबसे बड़ा लोकतंत्र -जिंदाबाद !

   केंद्र में ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री मोदीजी और उनके नेतत्व में विशुध्द 'राष्ट्र्वादी' एनडीए सरकार-जिंदाबाद !

    रियो ओलम्पिक खेलों पर दो सौ करोड़ रूपये  खर्च करने वाले मंत्री ,अफसर,कोच -खिलाड़ी -जिंदाबाद !

   अपने खिलाडियों की जीत के लिए -यज्ञ , हवन ,कीर्तन,मन्नत ,पूजा -पाठ  करने वाले शृद्धालु -जिंदाबाद !

    कासे का एक पदक जीतनेवाली साक्षी और चाँदी का मेडल जीतने वाली संधू और उनके कोच -जिंदाबाद !

   आजादीके सत्तर साल बाद रियो ओलम्पिक में भारतको एक भी स्वर्णपदक नहीं मिला भृष्ट सिस्टम -मुर्दाबाद !

गुरुवार, 18 अगस्त 2016


  भाव  भगत भादों नदी,बढ़त-बढ़त बढ़ जाय।

  सरिता वही सराहिये ,जो जेठ मास  ठहराय।। ...[अज्ञात]


अर्थ :- मानवीय  सम्बन्धों की सार्थकता तभी है, जब बुरे बक्त में भी भाईचारा और मित्रताका निर्वहन हो। 'सुख के सब साथी ,दुःख में न कोय' के सिद्धांत को झुठलाकर ,जो लोग अपने बेबस -लाचार ,दुखी -मित्रों,बन्धु -बांधवों से मुख नहीं मोड़ते और सदा साथ निभाते हैं ,उनमें मानवीय संवेदनाओं की अविरल धारा निरन्तर प्रवाहमान होती रहती है। यह मानवीय व्यवहार और सामाजिक सरोकार -सदानीरा गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों की मानिन्द हुआ करता है,जो जेठ के महीने में भी कल -कल बहा करतीं हैं। जो व्यक्ति केवल  'अच्छे दिनों' का ही बगलगीर है और बुरे बक्त में रंग बदलता है  वह बरसाती नाले या गटर की तरह होता है,जैसे भादों के महीने में तो नाले और गटर भी 'नदी;होने का भ्रम पैदा करते हैं किन्तु जेठ महीने में वहाँ धुल उड़ा करती है।  श्रीराम तिवारी ! 


बुधवार, 10 अगस्त 2016

शीला दीक्षित से सीखो -केजरीवाल


दिल्ली हाई  कोर्ट ने  एल जी [उपराज्यपाल]को दिल्ली क्षेत्र की प्रभुसत्ता के लिए सर्वशक्तिमान बताया है,उससे पहले एक अन्य प्रकरण में दिल्ली पुलिस को भी दिल्ली सरकार के प्रति 'अनुत्तरदायी' बताया है। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी आप' के मुख्यमंत्री  केजरीवाल और उनकी सरकार को 'केंद्र सरकार 'के कर्मचारियों की जाँच नहीं करने का निर्देश दिया है. भृष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों-अधिकारियों पर किसी भी तरह की दंडात्मक कार्यवाही  से भी वंचित किया है। कहने का लुब्बो-लुआब ये है कि न्यायपालिका ने 'आप'की  दिल्ली सरकार को 'शून्य' घोषित कर  दिया है। 'आप ' नेता केजरीवाल  जी कोई काम नहीं कर पाने के कारण घोर अशांत हैं।

दिल्ली 'राज्य' की संवैधानिक स्थिति तब भी यही थी ,जब शीला दीक्षित  दिल्ली की मुख्य मंत्री थीं। उन्होंने भी दिल्ली राज्य को 'राज्य का पूर्ण दर्जा 'माँगा था ,किन्तु उन्होंने उस मांग को असफलता का बहाना नहीं बनाया। शीला जी ने १५ साल लगातार  दिल्ली  पर शासन किया और इतने  काम किये हैं कि  गिनना मुश्किल है और उन्होंने कभी किसी अदालत में अधिकार नहीं होने या एल जी के असहयोग का रोना भी नहीं रोया। दिल्ली पुलिस से जरुर वे परेशान रहीं ,किन्तु विकास कार्य रुकने नहीं दिए। इसलिए सुझाव है कि शीला दीक्षित से भी कुछ सीखो -अरविन्द केजरीवाल ! श्रीराम तिवारी

मंगलवार, 2 अगस्त 2016

मोदी जी -'पाहुनों से साँप नहीं मरते '


सुप्रसिद्ध साहित्यकार  महाश्वेता देवी के निधन पर देश और दुनिया के प्रबुद्ध वर्ग ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये, किसी ने शब्दांजलि ,किसी ने श्रद्धांजलि और  किसी भावांजलि व्यक्त की । भाजपा नेताओं और उनकी सरकार के मंत्रियों में तो श्रद्धांजलि देने की होड़  सी मच गई।  इस होड़ की हड़बड़ी में बड़ी गड़बड़ी हो गई।  विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्ववीट किया कि महाश्वेता देवी की दो साहित्यिक कृतियों -'प्रथम प्रतिश्रुति' और 'बकुल कथा 'से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली है । उनके इस ट्वीट को लगभग चार सौ ट्वीटर  'विद्वानों' ने लाइक भी कर  दिया,लेकिन सुषमा जी को जब किसी शुभचिंतक ने सूचित किया कि ये दोनों रचनाएँ तो आशापूर्णा  देवी की हैं ,तो उन्होंने अपने शोक संदेस को टवीटर से हटा लिया। दूसरा वाक्या भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह जी का है ,जो  काफी रोचक है। टवीटर पर महाश्वेता देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अमित शाह जी ने  'हजार  चौरासी की माँ ' और  'रुदाली' को  महाश्वेता देवी  की अत्यंत प्रभावशाली रचनाएँ बताया । अमित शाह जी को शायद मालूम ही नहीं कि 'हजार चौरासी की माँ'  से यदि वे प्रभावित हैं तो वे भाजपा में  क्यों हैं ? उन्हें तो  नक्सलवादियों  के साथ या माओवादियों के साथ होना चाहिए था !क्योंकि 'हजार चौरासी की माँ ' नक्सल आंदोलन की  प्रबल पक्षधर है।

 दरसल भाजपा और संघके बौध्दिकों में वैचारिक दरिद्रता और द्वंदात्मक  चिंतन की कंगाली है, वे गुलगुले तो  गप-गप खा जाते हैं ,किन्तु गुड़ खानेके परहेज  का पाखण्ड करते हैं। उन्हें जहाँ कहीं कोई नजमा हेपतुल्लाह या जगदम्बिका पाल  जैसा विद्रोही कांग्रेसी दिखा ,जहाँ कहीं कोई सुरेश प्रभु जैसा विद्रोही  शिवसैनिक  दिखा ,जहाँ कहीं कोई पथभृष्ट जीतनराम मांझी दिखा ,कोई   'सुधारवादी वामपंथी' समाजवादी  दिखा कि भाजपा वाले उसे अपने 'पाले'में घसीट लाने की जुगत में भिड़ जाते हैं। केरल विधान सभा चुनाव  में माकपा- एलडीएफ की जीत पर मोदी जी ने सीपीएम पार्टी को नहीं, पिनराई  विजयन को नहीं, बल्कि अच्युतानंदन को  फोन पर बधाई दी।  क्योंकी मोदीजी को मालूम था  कि बुजुर्ग कामरेड अच्युतानंदन  पिनराई  विजयन और पार्टी नेतत्व से 'नाराज' हैं। भाजपा वाले  पक्के घर फोड़ू हैं। ये लोग किसी मेट्रिक फ़ैल को मंत्री ,किसी असफल गुमनाम कलाकार को एफटीटीआई का अध्यक्ष बना देंगे और किसी काले कौवे को 'भारत रत्न ' बना लेंगे। किन्तु ज्योति वसु, माणिक सरकार का सम्मानपूर्वक नाम ,सपने में भी नहीं लेंगे। क्योंकि 'संघ' वाले अपने अलावा और किसी विचारधारा का 'अनुशासन' पसन्द करते !

हिंदुत्ववादी वीरों ने  'असहिष्णुता'और अभिव्यक्ति  के मुद्दे पर नामवरसिंह द्वारा अलग -थलग स्टेण्ड लेने पर  उनकी  भूरि -भूरि प्रशंसा की है , नामवरसिंह के जन्म दिन पर मोदी जी ने बधाई सन्देश भेजा और देश के गृह मंत्री राजनाथसिंह जी ने खुद उपस्थित होकर शिद्दत से नामवरसिंह का जन्म दिन मनाया ! लोगों के मन में  प्रश्न उठ रहे हैं  कि  क्या यह 'भाजपा'का हृदय परिवर्तन है ? क्या ऐंसा करके भाजपाई नेता उन मार्क्सवादी वामपंथी -नामवरसिंह के लिखे हुए को  मिटा सकते हैं। और नामवरसिंह ने ऐंसा  कहाँ-कब-क्या लिख दिया जो गोडसे या गोलवलकर के 'चिंतन'से मेल खाता है ? यदि नामवर के बहाने भाजपा नेताओं ने 'सबका साथ -सबका विकास 'मन्त्र पर अम्ल किया है , तब तो ठीक है। किन्तु उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि 'भरोसे की भैंस पाड़ा नहीं जनती 'और 'नटवन खेती -बहुअंन घर नहीं चलते '!'पाहुनों से साँप नहीं मरवाते 'अनेक प्रमाण हैं जहाँ 'संघ' और भाजपा ने पथभृष्ट दलबदलू कांग्रेसी , दिग्भृमित वामपंथी ,उजबक समाजवादी और महत्वाकांक्षी  शिवसैनिक को अपना 'कर्ण 'बनाया है ! मोदी जी खुद दुर्योधन की तरह इन सभी को 'अंगराज'कर्ण बनाते जा रहे हैं ,उधर उनके 'वैचारिक सहोदर' दलित -उत्पीड़न और नारी विमर्श में दुशासन की भूमिका अदा किये जा रहे हैं !  श्रीराम तिवारी