गुरुवार, 29 सितंबर 2016

चुल्लू भर सफलता पर बोरा जाना उचित नहीं


ऑपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक की आंशिक सफलता पर देशवासियों में आत्मविश्वास जागृत हुआ -सभी को बधाई,! आंशिक सफलता से  तातपर्य है कि पाकपरस्त आतंकवाद का भयानक भूत बहुत शैतानी और अजर-अमर है ।  यह रक्तबीज और सहस्त्रबाहु की तरह पुनर्जीवी और सर्वव्यापी है।पीओके में 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक तो महज  एक प्रतीकात्मक कार्यवाही ही है ,लेकिन यह महायुद्ध का शंखनाद भी  सावित हो सकता है। भारतीय नेतत्व को आपरेशन की सफलता से प्रेरणा लेकर आगे की कार्यवाहियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारतीय सीमा के निकट 'पीओके' स्थित आतंकी केम्पों को ध्वस्त कर भारतीय कमांडोज ने दो पाकिस्तानी फौजियों को मार गिराया और सम्भतः ३८ आतंकी भी ढेर कर दिए। यह पठानकोट,उरी पर हुए आतंकवादी हमलों का माकूल जबाब है। आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक की कार्यवाही का सफल संचालन और सम्पूर्ण विपक्ष का विश्वास अर्जित करना - मोदी सरकार की यह पहली कामयाबी है बधाई ,,! लेकिन सरकार समर्थकों को इस चुल्लू भर सफलता पर बोरा जाना उचित नहीं ,बल्कि होशोहवास में रहकर देश की रक्षा के लिए कटिबद्ध होना बहुत जरुरी है। इसके लिए  सेना और सरकार का साथ देना भी बहुत जरुरी है।और  सरकारी तंत्र में बैठे सभी अफसर - नेता लोग वह आचरण भी अमल में लायें  जो युध्दकाल में  वांछित है। जिस त्याग की भावना काऔर नैतिक आचरण का दरोमदार एक विजेता कौम या राष्ट्र पर हुआ करता है,वह हम भारत के लोगों में भी दिखना चहिये। 'नंगू के गड़ई भई ,बेर-बेर हगन गई' की कहावत चरितार्थ नहीं होनी चाहिए। त्याग और अनुशासन की जो उम्मीद जनता से की जाती है, शासकवर्ग के लोग भी उस पर अमल करंगे तो पाकपरस्त आतंकवाद एवम विश्व आतंकवाद  भी फ़ना हो जाएगा। इस आत्नाक्वाद बनाम आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक के विमर्श में उलझकर देश की आवाम  और सरकार को अपने अन्य अभीष्ट सरोकार नहीं भूलने चाहिए। विश्व विरादरी का विश्वास हर हाल में बनाये रखना जरुरी है।  श्रीराम तिवारी !

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

याद रखो आतंकियों ,तुम्हारे सिर लाएँगे काटकर ! [poem by Shriram Tiwari ]

 अबे ओ पाकिस्तान ज़रा होश की दवा कर ,

 बम बारूद की नहीं इंसानियत की फ़िक्र कर ,


 सच्चे 'देशभक्त' चूँकि अभी भारत की सत्ता में हैं ,

 इसीलिये पाक तूँ अभीतक खैरियतसे है शुक्र कर।


  सोचकर देख भाजपा वाले यदि विपक्ष में होते तो,

  अठारह की जगह अठ्ठाईश  सिर ले आते  काटकर।


   पठानकोट,पुंछ, उरी ,उधमपुर ,जम्मू और श्रीनगर

    तूने कितने बेगुनाहोंको मारा मोदी राज में याद कर।


   ढाई साल बाद देशभक्त यदि फिरसे विपक्ष में आगए

    तो याद रखो सारे आतंकियों के सिर लाएँगे काटकर।

                               श्रीराम तिवारी

एक राजनैतिक पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म में हीरो अनिल कपूर फ़िल्मी 'मुख्यमंत्री' अमरीश पूरी को सिस्टम की अनैतिकता पर बड़ा ओजस्वी भाषण देता है। अमरीशपुरी भी कटाक्ष करते हैं कि 'कहना आसान है ,सत्ता में आकर खुद करके दिखाओ तब पता चलेगा, कि सिस्टम के खिलाफ जानेमें कितना जोखिम है !' इस वार्तालाप के बाद अनिल कपूर याने 'नायक'को 'संवैधानिक विशेषाधिकार'के तहत एक दिन का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है।

चूँकि अनिल कपूर रुपी 'एक दिन के बादशाह' को ईमानदार न्यायप्रिय जनता एवम परेश रावल रुपी निष्ठावान पीए का समर्थन  हासिल रहता है ,इसलिए फ़िल्मी कहानी का सुखान्त इस सन्देश के साथ होता है कि कितना ही बदनाम और खराब सिस्टम हो यदि  उस सिस्टम के अलमबरदारों को जूते मारो तो वो भी सुधर सकता है।और बिना किसी  रक्तिम क्रांति के २४ घंटे बीतनेसे कुछ क्षण पहले ही 'नायक' द्वारा तमाम भृष्ट अनैतिक आचरण वाले अफसर - नेता और मुख्यमंत्री भी जेल के सींकचों के अंदर कर दिए जाते हैं। मोदी जी याद रखें कि सत्ता सम्भाले हुए उन्हें ढाई वर्ष बीत चुके हैं ,लेकिन अभी तक एक भी किसी बड़े स्केम वाले  भृष्ट नेता -अधिकारी का बाल भी बांका नहीं  हुआ है । स्विस खातों से एक पैसा नहीं आया है और पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों पर रंचमात्र लगाम  नहीं कस पाए हैं। बल्कि मोदी सरकार की एकमात्र उपलब्धि यह है कि अम्बानियों-अडानियों के तो वारे-न्यारे हैं और पाकिस्तानी हुक्मरान आये दिन आतंकियों के बहाने भारत के सैनिकों को गाजरमुली की तरह काट रहे हैं। कभी पठाकोट,कभी उधमपुर और कभी उरी केम्प में हमारे सैनिक  बेमौत  क्यों मारे जा रहे हैं ? क्या यही अच्छे दिनों का प्रमाण है ?

बुधवार, 14 सितंबर 2016

ये लातों के भूत हैं बातों से नहीं मानेंगे !'


अलगाववादी आतंकी बुरहान बानी के मारे जाने के बाद ,कश्मीर में पाक परस्त अलगाववादियों ने कोहराम मचा रखा है।  जम्मू -कश्मीर की भाजपा समर्थित महबूबा मुफ्ती सरकार जब इन बदमाश पत्थरबाज दहशतगर्दों को नियंत्रित  करने में असफल रही और  पाकिस्तान ने  जब इस स्थिति पर मगरमच्छ के आंसू यूएनओ में बहाये तो भारत के विरोधी दलों ने इस समस्या को गंभीरता से लिया। उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कश्मीरकी ओर  देखा। इतना अहि नहीं सांसदों का सर्व दलीय प्रतिनिधिमंडल खुद कश्मीर गया। लेकिन खेद की बात है कि हुर्रियत के नेताओं ने इस प्रतिनिधि मंडल से बात नहीं की। गुलाम गिलानी,उमर मलिक और अन्य हुर्रियत नेता अपनी-अपनी ऊँची अटरियों से इस प्रतिनिधिमंडल को दूर से निहारते रहे।

वैताल रुपी कश्मीरियत,जम्हूरियत और इंसानियत का शव अपने कन्धों पर लादकर विक्रम रुपी सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल  वैरंग वापिस दिल्ली लौट आया। राजनैतिक इतिहास में इतना अपमान तो  शायद शीत युद्ध के दौरान किसिंगर या ग्रोमिको का भी नहीं हुआ होगा।  इस घटना से कश्मीर विषयक प्रशासनिक विफलताओं की आलोचना भी थम गयी। मुख्यमंत्री  महबूबा मुफ्ती और प्रधानमंत्री  मोदी जी  दोनों को राहत की संजीविनी मिल गयी।  स्टेट पक्ष को  यह कहने का अवसर  भी मिल गया कि 'देखा -हमतो कबसे कह रहे थे कि ये पत्थरबाज केवल लातों के भूत हैं  और बातों से नहीं मानेंगे !'

जहाँ तक  हुर्रियत द्वारा सर्वदलीय सांसदों के प्रतिनिधि मंडल के अपमान का सवाल है ,तो उसके लिए 'अब्दुल रहीम  खान-ए खाना 'पहले ही जाता गए हैं कि :-

''केहिं की महिमा न घटी ,पर घर गए रहीम।

 अच्युत चरण तरंगणी  ,गंग नाम भव  धीम।। ''         [ श्रीराम तिवारी ]

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

हिंदी दिवस पर सभी हिंदी प्रेमियों का -सादर अभिवादन !



 दुनिया में लगभग ५० करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। यह संसार की चौथी सबसे बड़ी भाषा है। आज [१४-सितम्बर] के दिन सन १९४९ में भारत की संविधान सभा ने ,देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा स्वीकार किया । २६ जनवरी-१९५० को अनुच्छेद-३४३ के तहत इसे  राजभाषा के रूप में स्वीकृत किया।भारतीय संविधान में २२ भाषाओँ को शेड्यूल्ड भाषा का दर्जा प्राप्त है। इनमें से दो भाषाओँ -हिंदी और अंग्रेजीको सरकारी कामकाज के लिए मान्यता है। आजका दिन हिंदी की अस्मिता के लिए ,उसके साहित्यिक उत्थान के लिए और उसके वैश्विक प्रचार-प्रसार को सम्पर्पित है। आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी युग में हिंदी भाषा का साहित्यिक और सांस्कृतिक पक्ष तो निरन्तर गतिशील है ,किन्तु विश्व की अन्य भाषाओँ के सापेक्ष हिंदी का तकनीकि पक्ष बहुत कमजोर है।  हम सभी का यह राष्ट्रीय दायित्व है कि सामाजिक राजनैतिक,आर्थिक ,डिजिटल,इल्क्ट्रोनिक एवम दृश्य-श्रव्य माध्यमों पर हिंदी की गरिमा बनाये रखने के लिए अपने-अपने हिस्से की सार्थक भूमिका अदा करें ।

   हिंदी दिवस पर सभी हिंदी प्रेमियों का -सादर अभिवादन   !  श्रीराम तिवारी - 

शनिवार, 10 सितंबर 2016

वामपंथी छात्र संघों को जेएनयू में विजय की शुभकामनाएं !



फ़िल्मी गाने का मुखड़ा बड़ा आकर्षक है कि ''दिल्ली तो दिल है हिंदुस्तान का 'और बाकई दिल्ली सिर्फ वर्तमान भारत की ही नहीं बल्कि अतीत में उस तमाम 'अखण्ड भारत' का' दिल' रही है, जिस पर लालकिले से मुगलों ने शासन किया और  वायसराय भवन से अंग्रेजों ने शासन किया। इसी दिल्ली के दिल में 'जेएनयू' विश्वविद्यालय वसा है। जेएनयू के दिल में  वामपंथी छात्र संघ की विचारधारा का निवास है।वामपंथी विचारधारा में धर्मनिरपेक्षता  , समाजवाद ,मानवतावाद और लोकतंत्र का निवास है। इसलिए जो लोग जेएनयू पर हमला करते हैं ,गालियाँ देते हैं,वे मानवता ,लोकतंत्र और भारत के शत्रु हैं !  

बुधवार, 7 सितंबर 2016

कायर का गीत -पेरुमल मुरुगन की कविता


कायर की वजह से

किसी पर मुसीबतें नहीं आती ,

दंगे नहीं होते किसी भी जगह पर ,

कुछ तबाह नहीं होता ,

कायर की वजह से !

तलवार नहीं निकालता  कायर,

और उसकी धार परखने के लिए ,

पेड़ों पर तलवार नहीं चलाता कायर !

क्योंकि उसे किसी पर वार नहीं करना है !

कायर कभी किसी को डरा कर नहीं रखता ,

कायर तो खुद डरता है अपने समय के अँधेरे से।

इसीलिये गीत निकलने लगते हैं आपने आप भीरु हृदय से।

कायर को  प्रकृति हमेशा  गले लगाती है ,

 जैसे कोई माँ अपने डरे हुए बच्चे को ले लेती है अपने आँचल में।

प्रकृति तो कायर के गले में डालती है जिंदगी का हार क्योंकि ,

मुसीबत से बचने के लिए कायर हमेशा अपनी हद में रहता है।

इसलिए वह अपने घर का कोना -कोना साफ़ रखता है और -

आपने कभी किसी कायर को खेल के मैदान में नहीं देखा होगा !

कायर कभी नफरत भरे राष्ट्रप्रेम का जोश लोगों में नहीं जगाता !

कायर कभी राजनीती में नही होता ,

किसी आदर्श विचारधारा को नहीं अपनाता ,

और वह किसी नेता का चमचा भी नहीं होता !

कायर किसी नेता के स्वागत  को तैयार नहीं रहता ,

उनके समर्थ में नारे भी नहीं लगाता ,

पैर  भी नहीं छूता!

कायर किसी का कुछ नहीं छीनता ,

वह उन्हें भी नहीं रोकता जो उसका सब कुछ छीन लेते हैं !

कायर नहीं करता  किसी असहाय अबला से बलात्कार ,

और किसी के शरीर को चोरी -छिपे देखता भी नहीं कायर !

कायर नहीं करता कभी किसी की निर्मम हत्या ,

वेशक ,कायर सोचता रहता है खुदकुशी के बारे में ,

और कायर ऐंसा कर भी लेता है  कभी-कभी !

कायर की वजह से ही बची है दुनिया अब तक ,

ओर बचा है 'मनुष्य',

वरना ये 'बहादुर' तो अब तक मिटा देते सारी दुनिया ,

और मनुष्यता भी !

[रचनाकार :-  पेरुमल मुरुगन -तमिल कवि ]






रविवार, 4 सितंबर 2016

जय श्री गणेश ,,,,,!



हिन्दू धर्मशास्त्र और लोक परम्परा में 'बिघ्नहर्ता ' श्रीगणेश का गुणानुवाद केवल धार्मिक पूजा पाठ तक ही सीमित नहीं है. बल्कि 'हिन्दू समाज' में श्रीगणेश की वंदना एक सकारात्मक सक्रियता का द्वैतक है। जिस तरह एक सच्चा मुसलमान कोई शुभ कार्य करता है तो 'बिस्मिल्लाह रहमान रहीम ,,,,,''शुरूं करता हूँ खुद के नाम पर ,,,,उसकी  रहमत के लिए'' ,,,,,इत्यादि अल्फाजों से प्रारम्भ करता है ,उसी तरह अधिकांस हिन्दू भी प्रत्येक शुभ और पवित्र कार्य  प्रारम्भ करने से पहले '' श्री गणेशाय नमः '' का ससम्मान  उच्चारण  करते हैं।  दरसल बिस्मिल्लाह रहमान रहीम ,,या ''श्री गणेशाय नमः ''  जैसे पवित्र सूक्त वाक्य के स्मरण मात्र से ,कोई भी इंसान अमानवीय कर्म करने की सोच भी नहीं सकता ! इन मानवीय सूत्रों में धर्मांधता या साम्प्रदायिकता नहीं है। बल्कि असामाजिक कृत्य पर जो नियंत्रण 'राज्य का कानून' या दण्ड संहिता नहीं क्र सकती वो काम ये 'पवित्र सूक्त' करते हैं। ये मनुष्य को पशु बनने से रोकने की क्षमता रखते हैं।

श्री गणेश भगवान् की पूजा अर्चना तो सनातन से चली आ रही है ,किन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत के स्वाधीनता संग्राम में जिस तरह बंगाल के साधुओं -काली भक्तों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ 'दुर्गा पूजा' को विस्तार दिया ,उसी तरह महाराष्ट्र में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 'श्री गणेश पूजा' को विस्तृत रूप प्रदान किया। तब इन त्यौहारों के बहाने गुलाम भारत की जनता आत्मबल और जनशक्ति संचित किए करती थी।  लेकिन आजादी के बाद  इन त्यौहारों में  चन्दा चोरी का की ,राजनीतिक स्वार्थ की और अनैतिक पाखण्ड की भरमार है। अब इन त्योहारों को नियंत्रित करने के लिए जनता को खुद ही सचेत होना चाहिए। विगत दिनों श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जब 'मटकी फोड़' की उचाई  और पार्टिसिपेंट की न्यूनतम आयु पर सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश दिए  तो राजठाकरे जैसे लोगों ने कोर्ट की अवमानना भी कर डाली।  वैसे भी धर्म-मजहब तो व्यक्तिगत विषय है इसे सड़कों पर मनाना या इसके बहाने राजनीति करना दोनों ही अनैतिक हैं और धर्म को राजनीती में घुसेड़ना तो महापाप है। ये बात अलग है कि आज कल तो कुछ  मुनियों,बाबाओं को राजनीती में ही भगवान दिख रहे हैं। श्रीराम तिवारी  !