शनिवार, 10 दिसंबर 2016

अम्बानी,अडानी,अड़िया,और रोहतगी जैसों की सलाह मानकर चायवाले 'भाईजी' जाने कब अर्थशास्त्री हो गए?लेकिन उन्होंने  विमुद्रीकरण सहित उदारीकरण का जो अर्थशास्त्र देश पर थोप दिया है ,वह शिंजो आबे ,पुतिन और 'बराक भाई' भी शायद पसन्द न करे! काश उन्होंने अपने 'आम आदमी' वाले व्यक्तित्व का ख़ास पूँजीवादी कायाल्पकरण करने से पहले कविवर रहीम का यह दोहा पढ़ लिया होता !

''रहिमन देख बडेन को ,लघु न दीजिये डार।

 जहाँ काम आवे सुई , कहा  करे  तलवार।।''


मोदी जी और उनकी टीम से यह उम्मीद नहीं कि वे दास केपिटल या 'वेल्थ ऑफ़ नेशन्स' पढ़ें ! वे चाणक्य का अर्थशास्त्र पढ़ें ,इसकी भी उम्मीद नहीं ! किन्तु वे गोस्वामी तुलसीदास रचित 'रामचरित मानस' के सिर्फ दो दोहे भी ठीक से पढ़ लें तो वे या तो राजनीती छोड़ देंगे या पूंजीवादी 'नीतियाँ ' बदल डालेंगे !

[१]-दंड जतिन कर  भेद जहँ ,नर्तक नृत्य समाज।

    जितहु मनहिं अस सुनिय जग ,रामचन्द्र के राज।। [उत्तरकांड]

[२]- बिधु महि पूर मयूखन्हि ,रवि तप जितनेहु काज।

        मांगे बारिद  देहिं  जल , रामचन्द्र  के  राज।।  [उत्तरकांड]

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