भाव भगत भादों नदी,बढ़त-बढ़त बढ़ जाय।
सरिता वही सराहिये ,जो जेठ मास ठहराय।। ...[अज्ञात]
अर्थ :- मानवीय सम्बन्धों की सार्थकता तभी है, जब बुरे बक्त में भी भाईचारा और मित्रताका निर्वहन हो। 'सुख के सब साथी ,दुःख में न कोय' के सिद्धांत को झुठलाकर ,जो लोग अपने बेबस -लाचार ,दुखी -मित्रों,बन्धु -बांधवों से मुख नहीं मोड़ते और सदा साथ निभाते हैं ,उनमें मानवीय संवेदनाओं की अविरल धारा निरन्तर प्रवाहमान होती रहती है। यह मानवीय व्यवहार और सामाजिक सरोकार -सदानीरा गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों की मानिन्द हुआ करता है,जो जेठ के महीने में भी कल -कल बहा करतीं हैं। जो व्यक्ति केवल 'अच्छे दिनों' का ही बगलगीर है और बुरे बक्त में रंग बदलता है वह बरसाती नाले या गटर की तरह होता है,जैसे भादों के महीने में तो नाले और गटर भी 'नदी;होने का भ्रम पैदा करते हैं किन्तु जेठ महीने में वहाँ धुल उड़ा करती है। श्रीराम तिवारी !
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