विगत १५ अगस्त को भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने लालकिले से राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कश्मीर में पाकिस्तान के हिंसक हस्तेक्षेप का जबाब देते हुए पाकिस्तान अधिकृत गिलगित ,बलूचिस्तान और पीओके में पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा किये जा रहे दमन का उल्लेख किया था। पाकिस्तान के तीन बड़े निर्वासित बलूच नेताओं - बर्ह्मदग बुगती ,हर्बियार मरीम और करीमा बलूच ने तब मोदी जी को 'थैंक्स' कहा था। इस धन्यवाद से नाराज होकर पाकिस्तान सरकार ने इन तीनों नेताओं पर देशद्रोह के मुकद्दमें ठोंक दिए हैं । इस घटना से जाहिर होता है कि पाकिस्तान में किसी विरोधी देश या विरोधी व्यक्ति को धन्यवाद देने का अधिकार नहीं है। दुनिया के किसी भी लोकतान्त्रिक देश में ,अमेरिका में , ब्रिटेन में या भारत में रहने वाला हर शख्स अपने दुश्मन राष्ट्र की तारीफ या अपने नेताओं की निंदा कर सकता है । विगत दिनों अमेरिका के विदेश सचिव ने तो रूसी राष्ट्रपति पुतिन की जमकर तारीफ़ कर डाली और पुतिनको ओबामासे बेहतर बताया। रोचक बात यह है कि यह रहस्योद्घाटन खुद भारत के प्रधानमंत्री मोदी से शेयर किया गया ।
भारत के कश्मीरी अलगाववादी - 'पत्थरबाजों'ने कश्मीर में हजारों कश्मीरी पंडितों को मार डाला ,लाखोंको बेघर कर दिया ,उन्हें कश्मीर छोड़ने को मजबूर किया ,उनकी बहिन -बेटियों के साथ बुरा सलूक किया। इसके बदले में जेएनयू ने उन्हें सम्मान दिया। जबकि कश्मीरी पुलिस और भारतीय फ़ौज पर यही दहशतगर्द अक्सर धोखे से हमले करते रहते हैं। किन्तु भारतीय लोकतंत्र की महानता है कि फिर भी हम नरमाई से पेश आ रहेहैं। 'बातचीत' सुलह सफाई से काम ले रहे हैं। यदि ये कश्मीरी पत्थरबाज पाकिस्तान में होते तो अभी तक 'जहन्नुम को प्यारे हो गए होते ' ! इन उग्रवादियों को याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान में 'थेंक्स'कहना भी देशद्रोह है।
'रियो डी जेनेरियो' -ओलम्पिक समापन उपरान्त जारी अंतिम पदक सूची के अनुसार अमेरिका अपने प्रथम स्थान पर नाबाद है। लेकिन जो देश विगत चार ओलम्पिक खेलों से लगातार नंबर दो पर हुआ करता था ,वो चीन अब नंबर तीन पर आ गया है। उसकी जगह ब्रिटेन नंबर दो पर आ गया है। १९८० के ओलम्पिक में तो सोवियत संघ नंबर वन था। किंतु सोवियत विखण्डन के उपरान्त वाला रूस अब ५ -६ नंबर पर खिसक गया है। लेकिन यदि उसके बिखरे फेडरल राष्ट्रों -रूस ,यूक्रेन,जार्जिया,उजवेगस्तान,अजरवेजान,तुर्कमेनिस्तान इत्यादि के मेडल एक साथ जोड़ें जाएँ ,तो यह कुल योग अमेरिका को मिले कुल पदकों से भी ज्यादा होगा ।अर्थात 'सोवियतसंघ' यथावत होता तो रियो ओलम्पिक में वही नबर वन होता। और अमेरिका नंबर दो पर ही होता।
उधर चीन के खिलाडियों और चीन सरकार ने खेलों के लिए इस ओलम्पिक में जी जान लगा दी थी। चीनियों का मकसद था कि रियो में चीन नम्बर दो पर आये ;और अमेरिका को पीछे छोड़ दे। चीन चौबे से छब्बे तो नहीं बन पाया किन्तु दुब्बे जरूर बन गया। क्योंकि ब्रिटेन ने दूसरा स्थान छीन लिया है। जबकि १९९६ में ब्रिटेन को सिर्फ एक स्वर्ण पदक मिला था। उससे नसीहत लेकर ब्रिटिश सरकार ने खेल विषयक नीतियाँ और कार्यकर्मों में कुछ खास परिवर्तन किये थे , परिणामस्वरूप रियो ओलम्पिक में ब्रिटिश खिलाडियों ने चीनी खिलाडियों से भी बेहतर प्रदर्शन किया है । और अब ब्रिटेन नंबर दो पर है । भारत की मोदी सरकार ने विगत सवा दो साल में जो कुछ किया उसका परिणाम सबके सामने है। पहले आधा दर्जन मेडल लाया करते थे ,इस बार केवल दो पदकों में ही सरकार और खेल प्रेमी गदगद हो रहे हैं। पुराने और परम्परागत भारतीय भृष्ट खेल प्रबधन पर कोई लगाम नहीं लगाई गयी। पुराने भृष्टों की जगह अपने 'संघनिष्ठ' नए भृष्ट अफसरों और मक्कार नेताओं को खेल प्रबधन सौंप कर केंद्र सरकार चैन की नींद सोती रही । सवा दो साल केवल ठकुर सुहाती ही बर्बाद कर दिए !अब दो पदकों को देख-देख ऐंसे किलक रहे मानों क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान को हरा दिया हो !श्रीराम !
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