शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

अब भारत भी एक अमीर देश हो गया है।


विश्व बैंक के एक सर्वे में दुनिया के अमीर देशों की सूची जारी हुई है। अमेरिका पहले स्थान पर है ,रूस नम्बर दो पर ,चीन नंबर तीन पर और भारत का नम्बर सातवाँ है। दुनिया के दो सौ बारह राष्ट्रों में यदि मेरे भारत का नम्बर सातवां  है तो यह कुछ कम उपलब्धि नहीं है। अपनी पीठ ठोकने लायक  बहुत है। काश ! रियो ओलम्पिक की पदक तालिकामें भी भारतका यही नंबर होता ! बहरहाल रियो ओलम्पिक में हुई  भारत -दुर्दशा की राष्ट्रीय शर्म को हवा में उड़ाकर, मैं  भारत के उदीयमान आर्थिक क्षितिज की ओर देख रहा हूँ।

विश्वके प्रमुख अमीर देशोंके साथ ७ वें नंबर पर भारतको देखकर ,मुझे सूझ नहीं पड़ रहा कि मैं हँसू या रोऊँ !क्योंकि पूँजीवादी विकास का एकमात्र अर्थ है कि इस विकास के दुष्परिणाम का फल देश की गरीब जनता को ही भुगतना पड़ता है। जैसे कि मिट्टी का ऊँचा टीला या चबूतरा बनाने के लिए आसपास की जमीन से ही मिट्टी खोदकर उस टीले को ऊंचा किया जाता है ,उसी तरह यदि  देश में कुछ लोग ज्यादा अमीर बनेगें तो उनके हिस्से में जो धन की बाढ़ आई वह धन उनके हिस्से का ही होगा जो कंगाल होते जा रहे हैं । यद्द्पि इस सूचना से मुझे खुश होना चाहिए था , कि भारत अब और जायद अमीर देश हो गया है। किन्तु इस खबर के वास्तविक अर्थ  की समझ रखने वाला कोईभी  सच्चा भारतीय  खुश होने के बजाय कुपित ही होगा। क्योंकि इस समृद्धि का अर्थ स्पष्ट है कि ज्यादा लोगों के आर्थिक शोषण से ही  चन्द अमीर घरानों -कार्पोरेट्स के जमाखातों में आर्थिक इस कदर लुभावने हो गए  कि लगा भारत  भी एक अमीर देश हो गया है। 

क्या बिडम्बना है कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में दो-चार खरबपति ,दस- बीस अरबपति और मात्र ३%  इनकम टैक्स पेई हों ,जिस देश में ४०% जनता बीपीएल /एपीएल में झूल रही हो ,जिस देश की ६०% से ज्यादा आबादी अभी भी पीने योग्य पानी के लिए तरस रही हो ,जिस देश की ७०%जनता स्वास्थ सेवाओं से वंचित हो ,जिस देशकी आधी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर हो ,उस देश को यदि अमेरिका ,रूस ,चीन ,ब्रिटेन, जर्मनी,जापान,के बाद स्थान मिला हो तो खुश होने के बजाय सर पीटने का मन करता है।


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