सुप्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी के निधन पर देश और दुनिया के प्रबुद्ध वर्ग ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये, किसी ने शब्दांजलि ,किसी ने श्रद्धांजलि और किसी भावांजलि व्यक्त की । भाजपा नेताओं और उनकी सरकार के मंत्रियों में तो श्रद्धांजलि देने की होड़ सी मच गई। इस होड़ की हड़बड़ी में बड़ी गड़बड़ी हो गई। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्ववीट किया कि महाश्वेता देवी की दो साहित्यिक कृतियों -'प्रथम प्रतिश्रुति' और 'बकुल कथा 'से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली है । उनके इस ट्वीट को लगभग चार सौ ट्वीटर 'विद्वानों' ने लाइक भी कर दिया,लेकिन सुषमा जी को जब किसी शुभचिंतक ने सूचित किया कि ये दोनों रचनाएँ तो आशापूर्णा देवी की हैं ,तो उन्होंने अपने शोक संदेस को टवीटर से हटा लिया। दूसरा वाक्या भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह जी का है ,जो काफी रोचक है। टवीटर पर महाश्वेता देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अमित शाह जी ने 'हजार चौरासी की माँ ' और 'रुदाली' को महाश्वेता देवी की अत्यंत प्रभावशाली रचनाएँ बताया । अमित शाह जी को शायद मालूम ही नहीं कि 'हजार चौरासी की माँ' से यदि वे प्रभावित हैं तो वे भाजपा में क्यों हैं ? उन्हें तो नक्सलवादियों के साथ या माओवादियों के साथ होना चाहिए था !क्योंकि 'हजार चौरासी की माँ ' नक्सल आंदोलन की प्रबल पक्षधर है।
दरसल भाजपा और संघके बौध्दिकों में वैचारिक दरिद्रता और द्वंदात्मक चिंतन की कंगाली है, वे गुलगुले तो गप-गप खा जाते हैं ,किन्तु गुड़ खानेके परहेज का पाखण्ड करते हैं। उन्हें जहाँ कहीं कोई नजमा हेपतुल्लाह या जगदम्बिका पाल जैसा विद्रोही कांग्रेसी दिखा ,जहाँ कहीं कोई सुरेश प्रभु जैसा विद्रोही शिवसैनिक दिखा ,जहाँ कहीं कोई पथभृष्ट जीतनराम मांझी दिखा ,कोई 'सुधारवादी वामपंथी' समाजवादी दिखा कि भाजपा वाले उसे अपने 'पाले'में घसीट लाने की जुगत में भिड़ जाते हैं। केरल विधान सभा चुनाव में माकपा- एलडीएफ की जीत पर मोदी जी ने सीपीएम पार्टी को नहीं, पिनराई विजयन को नहीं, बल्कि अच्युतानंदन को फोन पर बधाई दी। क्योंकी मोदीजी को मालूम था कि बुजुर्ग कामरेड अच्युतानंदन पिनराई विजयन और पार्टी नेतत्व से 'नाराज' हैं। भाजपा वाले पक्के घर फोड़ू हैं। ये लोग किसी मेट्रिक फ़ैल को मंत्री ,किसी असफल गुमनाम कलाकार को एफटीटीआई का अध्यक्ष बना देंगे और किसी काले कौवे को 'भारत रत्न ' बना लेंगे। किन्तु ज्योति वसु, माणिक सरकार का सम्मानपूर्वक नाम ,सपने में भी नहीं लेंगे। क्योंकि 'संघ' वाले अपने अलावा और किसी विचारधारा का 'अनुशासन' पसन्द करते !
हिंदुत्ववादी वीरों ने 'असहिष्णुता'और अभिव्यक्ति के मुद्दे पर नामवरसिंह द्वारा अलग -थलग स्टेण्ड लेने पर उनकी भूरि -भूरि प्रशंसा की है , नामवरसिंह के जन्म दिन पर मोदी जी ने बधाई सन्देश भेजा और देश के गृह मंत्री राजनाथसिंह जी ने खुद उपस्थित होकर शिद्दत से नामवरसिंह का जन्म दिन मनाया ! लोगों के मन में प्रश्न उठ रहे हैं कि क्या यह 'भाजपा'का हृदय परिवर्तन है ? क्या ऐंसा करके भाजपाई नेता उन मार्क्सवादी वामपंथी -नामवरसिंह के लिखे हुए को मिटा सकते हैं। और नामवरसिंह ने ऐंसा कहाँ-कब-क्या लिख दिया जो गोडसे या गोलवलकर के 'चिंतन'से मेल खाता है ? यदि नामवर के बहाने भाजपा नेताओं ने 'सबका साथ -सबका विकास 'मन्त्र पर अम्ल किया है , तब तो ठीक है। किन्तु उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि 'भरोसे की भैंस पाड़ा नहीं जनती 'और 'नटवन खेती -बहुअंन घर नहीं चलते '!'पाहुनों से साँप नहीं मरवाते 'अनेक प्रमाण हैं जहाँ 'संघ' और भाजपा ने पथभृष्ट दलबदलू कांग्रेसी , दिग्भृमित वामपंथी ,उजबक समाजवादी और महत्वाकांक्षी शिवसैनिक को अपना 'कर्ण 'बनाया है ! मोदी जी खुद दुर्योधन की तरह इन सभी को 'अंगराज'कर्ण बनाते जा रहे हैं ,उधर उनके 'वैचारिक सहोदर' दलित -उत्पीड़न और नारी विमर्श में दुशासन की भूमिका अदा किये जा रहे हैं ! श्रीराम तिवारी
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